Book Title: Chattrish Bol Sangraha
Author(s): Agarchand Bherudan Sethia
Publisher: Agarchand Bherudan Sethia

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Page 361
________________ ********£9********09383863****€£93K*+C तित खाणीजें १४, अमृतसुं मीठो निखद्य बोलीजें १५, पांच सुमति तीन गुप्ति शु६ चोखी पालीजें १६, संसाररो सगपण काचो जाणीजें ११, खाणो लोग कर्म बंधरो कारण जाणीजें १८, धर्मरो सगपण साचो जाणीजें ११५, निर्दोनी सतगुरांरी संगत कीजें २०, पाप गरे परिहरीजें २१, गुरांसुं वांको वरते तिरो वो नांग जाणीजें २१, गुरांसुं सवी वरते तिरो बना जाग जाणीजें ३३, गुरांरी सीख जंघी मानें तो दी पुनयो जाणीजें २४, गुरांरी सीख सुघी मानें तो पुण्यवंत जाणीजें १५, चूक चालें तो चोर कदीजें २६, सुध चालें तो शाद कहीजें 29, जंबो वचन नदि बोले तिने गंभीर प्रादमी जाणीजें २०, घणी दांसी लबलब करें ते गु.. ने खोवें श‍, सूर थइ संथारो करें तो वीतराग सरिखो जाणीजें ३०, सुवतां सागारी सण कीजें ३१, पाबली रातरी सिवाय धर्म चिंतणा कीजें ३२, छायां घामे दील न सूजें ३३, तीन काल अशुन वात न कीजें ३४, संसाररो कार्य ज तावसुं न कीजें ३५, नम नागा न सूइजें ३६. ३६ प्रायुखारा बत्तीस बोल. १ जीव जाति व्यायु वर्ष १२०, २ दस्ति व्यायु वर्ष १२०, ३ ย *O* *O***************

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