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पावे ते अनाचार जाणवो श्राचारांग माहे कह्यो १, जे कोश् साधु ग्रहस्थ कंने वस्तु थोढण वास्ते लेवे ते अनाचारी जाणवो सुगमांग मांहे कह्यो अध्ययन ए मे ३, जे कोइ साधु काकमी खरखुज तया मोरही फल जी वनस्पतिना फलं गेली बीज काचरी काढी हुवे लेवेतेअनाचारी पनवणातया दशाश्रुत स्कंधमांहेकह्यो । जे को साधु साधवी एकठगे विहार करे ते आग्या बाहर गणांगमें कह्यो ,||* जे कोश् साधु साधवीनो थाएयो थाहार करे ते अनाचारी जाणवो आचारांगमें कह्यो बे ६, जे कोश् साधु गोचरी प्रमुख बाहार जातो थको नार उपगरण फलक पीवं पाटीया ग्रहस्थने नोलावीन जाय ते पाग्या वाहिर दश विकालिक ७ अध्ययनमें कह्यो , जे कोश् साधु ग्रहस्थ माथे चीठी तथा पोथी मेले ते अनाचारी जाणवा दश विकालिक ७ मे अध्ययनमे कह्यो , जे को साधु पुरुष विना स्त्रीने नपदेश देवे ते अनाचारी जाणवो नगवती सूत्रमें कह्यो ए, जे कोसाधु दोय तथा अढाइ कोस नपरांत थाहार पाणी लेवा जाय ते अनाचारी नगवती तथा उत्तराध्यन सूत्र में कह्यो १०, जे कोश् साधु व्य धातु राखे ते अनाचारी ब्रह्म व्या