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म ग्रंथका सार है २, जिसके पास दमारूपी खमंग नित्य पास है उसकुं क्रोधरूपी वैरी कुब नही कर सक्ता ३, शोकरूपी वैरीकुं ज्यादा पास रखोगे तो तुम्हारी बुद्धि के हिम्मत और धर्म ए तीनका जमसें नाश हो जावेगा , जैसे पुत्र विगर पालणा
और वींद विगर जान शोनती नही तैसें धर्म विगर आत्मा शोनती नही ५, जिके | मनुष्य परस्त्रीकुं मात तथा बेनके सदृश समफंता है और सर्व जीवोकुं अपणी था- 20 त्मा समान गिणता है वह मुखी नही होता यह वात शास्त्रधारा सिंध है ६, शा. स्त्रका श्रवण शमशानचूमि और रोग पीमा ए तीन स्थान वैराग्य उपजणेका मु.8 ख्य कारण है , बसमजका अर्थ करणेवालेकुं शास्त्रजी शस्त्रकी तरे हो जाता है ७, बुद्धि बढनेका र नया तर्क उत्पन्न होणेका मुख्य कारण मनकी शुद्धि है ए, 8 तुम्हको पुःख पमें उस वक्त चिंता त्याग कर धैर्य राखो क्युकि चिंता कुब सुख हरणेकी दवाई नही चिंतासें चतुरा घटेंगी जर चतुराश्के बनावे तप जप र ] · नियम किसकें श्राधारे रहेंगे सम दम र समाधि किसकुं अवलंबन करेंगे वास्ते |
उस वक्त धैर्य राख कर धर्म सेवण करना एहीज उत्तम है.१०, जो तुमको' सर्व १