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र्तव्यके करनेसे महा पापकर्मनी थामदानी होय. श्त्यर्थः-प्रथम अंगालकर्म सो कोयले करके वेचने और काचनही पजावें लगावें उर नाट फोकना इत्यादि कर्म करें नही १, और दूसरे वनकर्म. सो वन कटावें नही वन कटानेका ठेका लेवें नही १, सामीकर्म. सो गामी बहल पहिये बेमा हल चर्खा कोल्हु चुहा घीस पकमने पिंजरा इत्यादि बनवाके वेचें नही ३, चोथा नामीकर्म. सो ऊंट बैल घोमा गद्धा गामी रथ किराची श्नका नामा खावें नही ४, पांचवा फोमीकर्म. सो लोहेकी खान वा बूण आदिककी खान खुदावें फुमावें नही तथा पञ्चरकी खान फुमा खुदावें नही ये पांच कुकर्म कहें है. अब पांच कुवाणिज्य कहते है. प्रथम दांत कुवाणिज्य. सो हाथीके दांत उल्बुके नख गायका चमर मृगके सींग चममा जूता इत्यादिक वाणिज्य करें नही १, दूसरा लाख कुवाणिज्य. सो लाख नील सजी शोरा सुहागा मनशिल इत्यादिकका वाणिज्य करें नही१, तीसरा रस कुवाणिज्य सो मदिरा मांस चरबी घीराल मधु (शहत) खांम इत्यादिक ढीली वस्तुका वाणिज्य करें नही ३ चोथा केशवाणिज्य. सो हिपद लमका लम्की खरीद कर उन्हें पाल कर नफा कर
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