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नोग्यकी मर्यादावान ऐसे करेकि १ मर्यादा नपरांत सचित्त वस्तु फलादिक शुन्य चित्त अर्थात गाफिल होकर खावै नही और २ सचित्त वस्तुको स्पर्श कर मर्यादा उपरांतकी अचित्त वस्तुनी खाय नही जैसे बृदसे गुंद तोमके खाय तोगुंद अचित्त है और वृक्ष सचित्त है इत्यादि र ३ अधपक्का खाय नही और ५ कुरीतपक्काया जैसे ही चूर्थीयादिक-खाय नही और ए नूख अनिवारक जिस औषधि अर्थात जिस फलसे नूख न मिटें उसे खाय नही जैसे जिस फलका थोमा खाना और बहूत गेरनेका स्वन्नाव हे, यथा ईख सीताफल अनार सिंघोमा जामन जमोया कैत बिल्ल इत्यादि खाय नही,अथ दूसरे गुणवतमें अशुरु कर्त्तव्यकानी त्याग करे जैसेकी १५ कर्मादान सो पनरमें वोलसे जाना ॥ इति सप्तम ब्रतम् ॥
॥ अष्टम गुणवत प्रारंजः ।। अनर्थदंम अर्थात् नाहक कर्मबंधका ठिकाना तिसका त्याग करें वह अनर्थदंग च्यार प्रकारका है. १ प्रथम अवाणचस्यिं सो थार्तध्यान अर्थात् १ मनोगम पदार्थके न मिलनेकी चिंता ५ अमनोगम पदार्थ मिलनेकी चिंता ३ नोगोके न मिलनेकी चिंता और ४ रोगोके मिलनेकी चिंताका क