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श्राचार गेर लो अबतो सस्ते मिलते है तथा घरे तेरे खेतमें जामिये बोहोत हो गई है तथा बाम पुरानी होय गई है सो श्नको फूंक दे इत्यादि. इति तृतिय थनर्थदंम ३. श्रय ४ चोथा अनर्थदम. हिंसाप्रदान सो हल मुसल चकी चर्खा दांती कुहामा घीयांकस कांटा मोल निकालनेका कोहलु इत्यादि तथा शस्त्रकी जाती त-॥ था टोकना कमादा भासमाना इत्यादि उपकरण अपने वर्तनसे ज्यादा रखने सो विवेकवान रके नही. क्योंकि ज्यादा रखेगा तो हरएक माग लेजायगा तो वहलेजा || नेवाला नस उपकरणसे पटकाय हिंसारूप धारंन करेगा. तव जसको थारंनका हि-||* स्सा भावनेसें नाहक कर्मबंध होंगे. इस च्यार प्रकारके अनर्थदंमका बुध्विान पुरुष || त्याग करें यावज्जीवतक तो फिर ऐसें न करें. १ प्रथम कंदर्प सो हांसी बिलास ठ का (मश्करी) कामविकारके दिपानेवाले गीत राग रागनी दोहा बंद इत्यादिक निरर्थक चित्त मलीन करनेके और सोग पैदा करणेके कारण है. सोन करे और दूसरा कुकच सो जमचेष्टा जैसेकी काणेकी अंधेकी लंगमेकी गूंगेकी खाज श्रादि | रोगीकी नकल न करनी याने वैसे वनके दिखाना फिर हमहम करके हंसना जर