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सार संगत राखवी सदविद्या तथा धर्मना मूलतत्त्व शिखावना ११ जवान अवस्थामा पांचे इंजियोने वश करखी तथा रागपि विषय अने कपायादिक जीतवा, १५ हुँ मृ.. त्युना मुखमा रह्यो तुं माझं घायुष्य दणमात्र नथी एम मानी यथेष्टदान धर्म आचखा, १३ सर्व वस्तुनो नाश थतो होय तोपण पोतानुं वचन अवश्य पालवं, १५ क-|| रखं होय ते बनते प्रयत्न झाननी अने ज्ञानीनी विनय नक्ति करो अने लघुनीति
वमीनीति स्नान मेथुन अने नोजन करती वखते शब्द उच्चारण न करो. १४ जीवका नेद १५. एकेजीका ४ नेद. सुक्ष्म एकेंद्री अपर्याप्ता १, पर्याप्ता २, बादर ए
केंसी अपर्याप्ता ३, पर्याप्ता ४, चरेंडी अपर्याप्ता ५, पर्याप्ता ६, तेरेंडी अपर्याप्ता , पर्यासा , चोरेंडी अपर्याप्ता ए, पर्याप्ता १०, प्रसन्नीपंचेंजी थपर्यासा ११, पर्याप्ता |
१२, सन्नी पंचेंसी अपर्याप्ता १३, पर्याप्ता १४. १५ गुणगंणा १४. मिथ्यात्व गुणगंणो १, सास्वादन गुणगंणो १, मित्रगुणगंणो ३,
श्रवृत्ति सम्यग्दृष्टि ४, देशवृत्ति गुणगंणो ५, प्रमत्त गुणगणो ६, थप्रमत्त गुणगंपो, नियटिवादर गुणगणो , अनियट्रिवादर गुणगणो ए, सुक्ष्म संपराय गुं