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संघट्ट होय जाय तथा बालबच्चे के बावजावसें चित्त भंग होय जाय इत्यर्थः और || खामायिक शुछ सो लघुनाति वमीनीतिकी बाधाका काल न होय तथा राजादिक-||* 'के बुलानेका यानि कचहरी जानेका काल न होय क्योंकी चित्त व्याकुल होय जा यगाकि कव सामायिक पूरी होय और कब जाऊं इत्यर्थः ३ नावशुछ सो पूर्वोक्त नावका शुद्ध रखना ॥ इति प्रथम शिदाव्रतम् ॥ए॥
॥ अथ द्वितीय शिदाव्रतम् प्रारंन ॥ वितीय शिदावत दिशावकासी सोबळें| और सातवें व्रतमें दिशाका और जपनोग परिनोगका विस्तारसहित और यावज्जी वतक प्रमाण कियाथा सो उसमेंसे दसवें दिशावकाशीव्रतमें दो घमीसें लेकर चार * मास लगकी बहुत मर्यादा कर लेवें यथा सूत्रम् ॥इति द्वितीय शिदावतम् ॥१०॥
॥अथ तृतीय शिदाव्रत प्रारंनः ॥ तृतीय शिदावत पोसोपवास सो द्वितीया पं. चमी अष्टमी एकादशी चतुर्दशी तथा पदीके दिन वा जिस दिन बन या उसी दिन पोषधसाल अर्थात् एकांत मकानमें चारों श्राहार मैथुन और सावध व्यापारका परित्याग करके सूर्योदयसें अगले सूर्योदय तक बेग रहें यथा सूत्र पोसा करें,