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देवगुरु धर्मकी महिमारूप खाध्याय करें और पमना पमाना सिखना सिखाना थादिक धर्मकार्य करता रहें और जो पूर्वोक्त तिथियोंको पोपावन न बन यावें तो पदीको जरूर करें जर जो पदीको न बन आयें तो चोमामीको करें और जो चो. मासीकोनी न बन पायें नो उमरीको तो जरूरही पोपा करें क्युकी वर्षदिनमें एक दिन तो सफल होय जाय इत्यर्थ ।। शति तृतीय शिदावतम् ।। ११ । '
॥ अथ चतुर्थ शिदाव्रत प्रारंनः ।। चतुर्थ शिदाबत श्रातिश्यमंविनाग सो तथा रूप श्रमण साधु त्यागी पुरुषको निर्दीप पासूक अन्न पाणी देवें परंतु ऐसें न करेंकी १ प्रथम जो पासूक अर्थात् अभिआदिकसे नथा पीसन कूटन प्रमुख निर्जीव पदाथे हो चूका हो तो फिर जसको मचित्त फल फूल बीज आदिक नपर रखना नहीं || और २ दूसरे मचित्त वस्तु करके प्रासूक वस्तु को टके नही क्योंकी जो ऐसे रखें तो नसको साधु महापुरुषके पमिलाननेकी दान लब्धि केसे होगी और उनकी नावना विनतीनी निष्फल होय जायगी और ३ तीसरी साधुकी निदाकी वख्त बीते पी.
भावना नावनी सो कालाश्कम्मे दोष है क्योंकि समयपर नावना नावें तो शा.