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रना २ दूसरा रौऽध्यान अर्थात् यम हिंसानंद सो हिंसाकर कर्मके विचारमें| ध्यान होता जैसेकि मेरी सोकन तथा सोकनका पूत किस नपायसें मारा जाय | और कब मरेगा तथा मेरी स्त्री रोगी है वा कुरूपा कलहकारी हे सो कब मरेगी | और यह बुढाबुढी कब मरेंगे तथा मेरे वैरीका नास कब होयगा और वेरीके शोक || कब पमेंगा तथा वेरीके घरमें तथा खेतमें भाग कव लगेंगी इत्यादि और दूसरे मृपानंद सो जूठ बोलने के तथा जूग कलंक देनेके उपाय विचार रूप और ३ चौ.* निंद सो चोरीके ब्लके विश्वासमें देनेके प्रसंग ठगी करनेके उपाय विचाररूप |
और चोथे ४ संरक्षणानंद सोधन धान्यके पैदा करनेके तथा धन धान्यकी रदा करनेके हिंसाकारी उपाय विचाररूप अर्थात् चूहे घी खाते है तो बिल्ली रखो इत्यादि सोचे.थार्तध्यान जर रौध्यान,ध्यानमें अनर्थ अर्थात् नाहक कर्मबंध हो जातें है अथ दूसरा अनर्थदंम प्रमादाचरण सो प्रमाद ५ पांच प्रकारका है तिसका थाचरण सो प्रमादाचरण होता है सो १ प्रथम निषा प्रमाद सोचें मर्यादा वखत बेवखत मो रहना यथा निषा चार प्रकारकी है १ स्वल्पनिका २ सामान्यनि