________________
-
अपितु ज्यादा होय जाय तो धनयदानादि धर्मोपकारमें लगाय देवे ॥शति पंचम अनुव्रतम् ॥५॥
॥ अथ सात शिदाबत लिखते है सो श्न ७ सिदावतोमेंसे प्रथम तीन गुण- | व्रत कहते है. इन तीन गुणवतोकें अंगीकार करनेसें पूर्व पांच श्रनुब्रतोको संवररूप | गुणकी पुष्टि होती है। अथ प्रथम गुणव्रत प्रारंना प्रथम गुणवतमें दिशाकी म. र्यादा करे जेसेकी उंची नीची दिशा पर्वत महल ध्वजादिक र नीचि दिशा कुथा | चुमि गृह थादिक और तिर्वि दिशा पूर्व १ दक्षिण पश्चिम ३ उत्तर " इत्यादिक दिशानकी मर्यादा करे. जैसे कि में इतने कोस उपरांत स्वेला काया करी रंन व्यापारादिके निमित्त जाऊंगा नही क्योंकि उतने कोस उपरांत बाहिरले दोत्रके || बकायके हिंसारूप वैरकी निवृत्ति रहेगी. फिर ऐसे न करेकि पूर्व जो जंची नीची ति- | नि.३ दिशाका जितना प्रमाण करा हो जुस विसरा देवे, क्योंकि जो. विसारेगा तो. शायद जादा जाना पड़ जाय र ४ चोये एसे.न करेकि मैने पूर्वकी दिशाको १० जोजन जाना रखा है सो पश्चिमको जानेका तो काम कम पढ़ता है और पूर्वको