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वास्तुशास्त्रं
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विकथा
वास्तुशास्त्र (नपुं०) गृहनिर्माण शास्त्र। (जयो० २/६२)
विभाव, विकलता, विमोह विमान आदि में 'वि' अभाव वास्त्र (वि०) [वस्त्र+अण] वस्त्र से निर्मित।
को प्रकट करता है। वास्त्रः (पुं०) वस्त्राच्छादित यान।
कही कही पर 'वि' अव्यय वस्तु की विशेषता को व्यक्त वाह (अक०) उद्योग करना, प्रयत्न करना, चेष्टा करना। करता है। विशेष, विनियोजन, विकर्ष आदि। वाह (वि०) धारण करने वाला, ले जाने वाला।
'विः (पुं०/स्त्री०) [वा+इण] अश्व, घोड़ा। वाहः (पुं०) वाहन, यान, गाड़ी।
पक्षी। वीनां पक्षीणां भवेन सत्त्वेन (जयो० १८/४५, वाहकः (पुं०) कुली, भारवाहक।
भक्ति० १६) सहिता। (जयो०वृ० ३/११५) ०चालक, गाड़ीवान्, वाहक।
विंश (वि०) बीसवां। वाहनं (नपुं०) [वाह्यति-वह् णिच् ल्युट्] ०धारण करना, ले | विंशः (पुं०) बीसवां भाग। जाना।
विंशक (वि०) [विंशति+ण्वुन्] बीस। ०हांकना, ले जाना, ढोना, खींचना।
विंशत् (स्त्री०) बीस। सवारी, यान।
विंशतिः (स्त्री०) बीस, एक संख्या विशेष। आधार (सुद०११४) अश्वादि सवारी। (जयो०४/६३) विंशतिसर्गः (पुं०) बीसवां सर्ग। वाहसः (पुं०) [न वहति न गच्छति वह+असच्] ०जलमार्ग। विंशतिलक्षः (पुं०) बीस लाख। (समु० २/२०) ०अजगर।
विकम् (नपुं०) [विगतं कं जलं सुखं वा यत्र] व्याही गाय का वाहा (पुं०) बाहु, भुजा। (सुद० २/९)
दूध। वाहिकः (पुं०) [वाह ठक] बड़ा ढोल।
विकण्टकः (पुं०) [वि+कंक+अटन] एक वृक्ष विशेष। बैलगाड़ी।
विकच (वि०) [विकक+अच्] खिला हुआ, प्रफुल्लित, ०वाहका
फूला हुआ, विकसित। वाहितं (नपुं०) [वह+णिच्+क्त] भारी बोझ।
फैलाया हुआ, बखेरा हुआ। वाहित्थं (नपुं०) [वाह्नि-स्था+क] हाथी के लालट का निम्न विकचः (पुं०) केतु, बौद्ध भिक्षु। भाग।
विकट (वि०) [वि+कटच्] अत्यधिक, भयानक, भीषण, वाहिनी (स्त्री०) [वाहो अस्त्यस्या इनि+ङीप्] सेना, सैन्य डरावना, दुर्धर्ष। विकराल, कुरूप। समूह। (जयो० ७/९१)
विस्तृत, विस्तीर्ण, महान, विशाल। नदी, सरिता। (वीरो०४/२३) (जयो० १०८७) (जयो० ०प्रशस्त, व्यापक। ७/९८)
दारुण, खुंखार, वर्बर। वाहिनीनाथ (पुं०) समुद्र, सागर।
घमण्डी, अभिमानी, अहंकारी। वाहिनीश: (पुं०) समुद्र, रत्नाकर (दयो० १०४) ०सेनानी | विकटं (नपुं०) फोड़ा, घाव, अर्बुद, रसौली। (जयो० ६/११०)
विकत्थनं (नपुं०) [वि+कत्थ् ल्युट्] ०धौंस जमाना, मिथ्या वाह्य (वि०) बाहरी, बाहर का।
प्रशंसा। वाहिकः (पुं०) एक देश का नाम।
दर्पभाव, अहंकार पूर्ण कथन। वि (अव्य०) [वा+इण] यह धातु और संज्ञा शब्दों के पूर्व में | विकत्थन (वि०) आत्मप्रशंसक, स्वयं की प्रशंसा करने वाला,
जोड़ा जाता है। जिससे उसके अर्थ में परिवर्तन हो जाता __ अहंकारी, अभिमानी। है-विकीर्यते-में 'वि' उपसर्ग से फैलाने का अर्थ व्यक्त | विकत्था (स्त्री०) [वि+कत्थ्+अच्-टाप] मिथ्या प्रशंसा, झूठा होता है।
कथन, आत्मश्लाघा। विकथा-में प्रयुक्त 'वि' अव्यय से कथा का वह रूप ०व्यंग्योक्ति, दर्पोक्ति। सामने आ जाता है, जो विकार या उचित नहीं ऐसी | विकथा (स्त्री०) मिथ्या कथा, झूठी कथा, विरुद्ध कथा, संयम कथाएं आ जाती हैं।
विनाशक कथा। 'विरुद्धा संयमबाधकत्वेन कथा
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