Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 376
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वरग्रामः १२२९ स्वर्णकायः ११/४७) अकारादि स्वर (जयो० ११/७८) अकारादिवर्ण गच्छतिः। संगीत। (जयो० ११/४७) स्वरग्रामः (पुं०) स्वरसमूह, सप्तक स्वर। स्वरबद्ध (वि०) ताल एवं लय में बंधा हुआ। स्वरभक्तिः (स्त्री०) स्वर उच्चारण में र और ल अन्तर्निविष्ट स्वर की ध्वनि जब इन अक्षरों के पश्चात् कोई ऊष्मवर्ण या कोई अकेला व्यञ्जन हो। संयुक्त ध्वनियों के उच्चारण में कठिनाई का अनुभव होने के कारण उच्चारण सौकर्म के लिए उनके बीच में स्वरागम हो जाता है। सूर्य-सूर। स्वरभङ्गः (पुं०) स्वर का उच्चारण का स्खलन। स्वरमण्डलिका (स्त्री०) वीणा विशेष का नाम। स्वरलासिका (स्त्री०) बांसुरी, मुरली।।। स्वरशून्य (वि०) संगीत के ताल आदि स्वरों का अभाव या हीनता। स्वरसः (पुं०) आत्म रस। (सम्य० १२) स्वरसंयोगः (पुं०) स्वर का मिलन। स्वसङ्क्रमः (पुं०) स्वरों के उतार-चढ़ाव का क्रम। स्वरसम्पत्तिः (स्त्री०) गाए जाने वाले वाले गीत। वीणायाः स्वरसम्पत्तिं सन्निशम्यापि मानवाः। गायक एव जानामि। रागोऽत्रायं भवेदिति।। (वीरो० १५/२) स्वरसन्धि (स्त्री०) स्वरों का पारस्परिक मेल। स्वराज्यः (पुं०) स्वाधीनता, आत्म राज्य। स्वराज्य प्राप्तये धीमान् सत्याग्रह धुरन्धरः। ० सुंदर राज्य। (जयो० १८४८२) (वीरो० ११/३९) स्वरित (वि०) उच्चरित, ध्वनि युक्त। . स्वर्ग सम्बंधी। (समु० ५/४) स्वरु (पुं०) धूप। ० व्रज, ० बाण। स्वरुचा (स्त्री०) अपनी कान्ति। (समु० २/३) स्वरूपः (पुं०) अपना स्वरूप, आत्म रूप। (सुद० ८४) स्वरूपकथनम् (नपुं०) सम्यक् कथा कथन। (जयो० ११/१००) स्वरूपाचरणम् (नपुं०) चारित्र का एक भेद। आत्मा के यथार्थ स्वरूप में लीनता। स्वरूपे आसमन्ताच्चरणं..... स्वरूपाचरणं (भक्ति० ८०) चारित्र स्वसमय प्रवृत्तिरित्यर्थः (सम्य०१४३) • शुद्धोपयोग के तीन नामों में प्रथम। (सम्य० १४३) स्वरोटिका (स्त्री०) अपनी आजीविका। (वीरो० ९/९) | स्वर्गः (पुं०) [स्वरितं गीयते-गै+क, सु+ऋ+घञ्] स्वर्ग, सुरपुट। (जयो० ५/१०३) ० दिव, देवस्थान, परमस्थान (जयो० ३/६८) (वीरो०२/६) (जयो० १/५०) तत्स्वर्गतो नान्यादि याद्वदान्य। ० आत्महस्त। (जयो०वृ० १२/१३४) (सुद० १२६) स्वर्गगिरि (पुं०) सुमेरु पर्वत। स्वर्गत (वि०) स्वर्गीय। (वीरो० १८/३९) स्वर्गद (वि०) स्वर्ग प्रदायक। स्वर्गद्वारम् (नपुं०) स्वर्ग स्थान। स्वर्गधामः (पुं०) स्वर्ग निलय। ० स्वर्ग स्थान। ० शुभ स्थल। स्वर्गपतिः (पुं०) इन्द्र, शक्र। स्वर्गपादपः (पुं०) कल्पतरु। स्वर्गप्रदेशः (पुं०) स्वर्गस्थान। (सुद० १/२०) (दयो०४) स्वर्गप्रमाणक्षणम् (नपुं०) स्वर्ग जाने का समय। (वीरो० १८४८) स्वर्गप्रास्यभिलाषा (स्त्री०) सुखाशा। (जयो०६/४३) स्वर्गरमा (स्त्री०) मोक्षलक्ष्मी। (सुद० ७१) 'पतिः स्यां स्वर्गरमायाः'। (सुद०७१) स्वर्गलक्ष्मी (स्त्री०) स्वर्ग श्री। (जयो० ६/१३०) ० शुभश्री। स्वर्गश्री (स्त्री०) सुरपुर लक्ष्मी। (जयो० ३/१०३) ० स्वश्री। स्वर्गसम्पदा (स्त्री०) सुरपुर का स्थान, सुरपुर का वैभव। गजपादेनाध्वनि मृत्वाऽसौ स्वर्गसम्पदा यातः। (सुद० ११४) स्वर्गिन् (पुं०) [स्वर्गोऽस्त्यस्य भोगत्वेन इनि] देव, सुर, अमर, देवता। ० मृतक, मरा हुआ पुरुष। स्वर्गिवत् (वि०) स्वर्ग में रहने वाले की तरह देव तुल्य। (सुद० १/३९) स्वर्गीय (वि०) [स्वर्ग+छ यत् वा] दिव्य, दैवीय, दिव्य सम्बंधी। (जयो० ११/९२) स्वर्गीयवनम् (नपुं०) नन्दन वन। (जयो० १४/५) स्वर्गोदार (वि०) स्वर्ग सदृश्य। (जयो० ४/६८) स्वर्णम् (नपुं०) [सुष्ठु अर्णो वर्णो यस्य] सोना, कनक। (जयो० ७/१०२। __ ० हैम। (जयो० ११/१५) स्वर्णकः (पुं०) सोना, कथा (जयो० २/४३) स्वर्णकणः (पुं०) सोने के दाना। स्वर्णकणिका (स्त्री०) सोने का कण/एक हिस्सा। स्वर्णकायः (वि०) सुनहरी काया वाला, गौरवर्ण वाला। For Private and Personal Use Only

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