Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 385
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हर्षणं १२३८ हव्यमाहः हर्षणं (नपुं०) आनंद, खुशी, प्रसन्नता। हलिः (पुं०) हल। ० खूड। हर्षधारिन् (वि०) प्रसन्नता धारण करने वाला। (जयो० ८/५९) ० कृषि। हर्षप्रतिपद् (स्त्री०) हर्षयुक्त, प्रतिपदा। (सुद० २/११) ० बलराम। हर्षप्रद (वि०) प्रीतिद, आनंद प्रदाता। (जयो०वृ० २०/८९) हलिन् (पुं०) बलराम, ० कृषि, खूड। हर्षभावः (पुं०) मुदञ्चन, प्रमोदभाव। (जयो०वृ० १२/५७) हलिजनः (पुं०) किसान। ० चाण्डाल। हर्षवर (वि०) प्रसन्नता पूर्वक। (समु० ६/३२) ० कृषि बल। (जयो० ४/६७) हर्षसञ्जात (वि०) रोमाञ्च उत्पन्न करने वाला, म हलिनी (स्त्री०) [हलिन् ङीष्] हलों का समूह। (जयो०वृ० २१/४) हलीनः (पुं०) [हलाय हितः हल+ख] सागौन का पेड़। हर्षसन्तति (स्त्री०) आनंद परम्परा। (वीरो० ७/३३) हलीषा (स्त्री०) [हलस्य-ईषा] हल का दण्ड, हलस। जलमुच्चलमाप तावतेन्दुपुरं सम्प्रति हर्षसन्ततेः (वीरो० हल्य (वि०) [हल्+यत्] जोतने योग्य, हल चलाने योग्य। ७/३३) ० कुरुप, विकृताकृति। हर्षसर्गः (पुं०) आनंद भाग, प्रीति अंश। (समु० ६/१५) हल्लकम् (नपुं०) [हल्ल्+ण्वुल] रक्त कमल। हर्षस्वनः (पुं०) प्रसन्नता का भाव। आनन्द के स्वर। हल्लनम् (नपुं०) [हल्ल्+ल्युट्] लोटना, करवट बदलना। हर्षाङ्करम् (नपु०) हर्षभाव। (जयो०वृ० ३/८३) हल्लीशम् (नपुं०) वर्तुलाकार नृत्य। हर्षाश्रु (स्त्री०) प्रमोदवाष्प। (दयो० १६/८१) हवः (पुं०) [हु+अ, ह्वे+अप्] ० आहूति। ० यज्ञ, प्रार्थना, ० हषित (वि०) आह्लादित। (जयो० १/१०१) आहावन। ० आनन्दित, प्रफुल्लित। ० आमन्त्रण। ० आदेश। ० चुनौतो। हर्षितमानस् (नपुं०) आह्लादितचित्त। (जयो०वृ० १/१०६) हवनम् (नपुं०) [हु भावे ल्युट्] आहूति। ० आह्वान, ० प्रार्थना, हषिताङ्गम् (नपुं०) रोमाञ्चित देह। (जयो० १/९०) परिपुष्ट ० आमंत्रण। वेष। (जयो० वृ० १/८५) हवनकर्ता (वि०) हवन करने वाला, आहूति, देने वाला। हर्षुलः (पुं०) [हृष्+उलच्] हरिण। __(जयोवृ० १५/६७) ० प्रेमी। हवनीयम् (नपुं०) [हु+अनीयर्] आहूति देने योग्य। हर्षोकर्षः (पुं०) प्रमोद की वृद्धि। हर्षस्य प्रमोदस्योत्कर्षों हवनोचितः (पुं०) हवन के अनुरूप। (जयो०वृ० ७/८१) वृद्धिभावो। (जयो०वृ० ९/८३) हवित्री (स्त्री०) [हु+इत्रन्+ङीप्] आहूति स्थान। हल् (अक०) हल चलाना, जोतना। हविटासनम् (नपुं०) आग, अग्नि, होमान्नि, हवनाग्गि। (जयो हलम् (नपुं०) [हल् घञर्थे करणे क] लांगल, हल, खेत २८/४४) जोतने का उपकरण। हविया (वि०) हवनाग्नि। (जयो० १२/६९) हलधर (वि०) हल धारक, हल चलाने वाला। हविष्मत् (वि०) [हविस्+मतुप] आहूति वाला। हलधरः (पुं०) बलराम। हविष्यम् (नपुं०) [हविषे हितं कर्मणि यत्] आहूति देने योग्य हलभृत् (पुं०) हाली, बलराम। सामग्री। हलभूतिः (स्त्री०) किसानी, कृषिकर्म। हविस् (नपुं०) [हूयते हु कर्मणि असुन्] होम, आहूति। हलभृति देखो ऊपर। (जयो० १२/६९) हलहतिः (स्त्री०) खूड निकालना, जुताई, हल चलाना। ० घी। हविघुतमुत्तमस्तीति कारणम्। (जयो०वृ० १२/१८) हला (स्त्री०) [ह इति लीयते ह+ला+क+टाप्] सखी, सहेली। | हव्य (वि०) [हु कर्मणि+यत्] ० साकल्य, हवन में आहूति ० पृथ्वी। देने योग्य पदार्थ। (जयो०वृ० २३/६) ० जल। हव्यम् (नपुं०) घृत, घी। ० मदिरा। ० आहूति। हलाहलः (पुं०) विष। हव्यमाहः (पुं०) अग्नि, हवनाग्नि। For Private and Personal Use Only

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