Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 392
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हीत १२४५ हुण्डशरीरम् ० खेद प्रकाशने। (जयो० २७/३२) ० थकावट, उदासी, खिन्नता। हीत (वि०) सम्माननीय। (वीरो० १७/७) हीन (भू०क०कृ०) [हा+क्त, तस्य नः ईत्वम्] कम (सम्यक ४६) अल्प, छोटा। ० परित्यक्त, त्यागा हुआ। (जयो० ३/६) ० अभाव, रहित। (सुद० २/४९) विहीन। ० त्रुटिपूर्ण, सदोष। ० नीच, अधम। ० निम्न। हीनकुल (वि०) निम्नकुल वाला। हीनचारिन् (वि०) हीन आचरण वाला। (जयो०वृ० ११/२७) हीनज (वि०) नीच कुल में उत्पन्न होने वाला। हीनजनः (पुं०) तुच्छ लोग। निधिघटीं धनहीनजनो यथाऽधिपतिरेष विशां स्वहशा तथा। (सुद० २/४९) हीनजाति (वि०) निम्न जाति में उत्पन्न हुआ। ० पतित, तुच्छता युक्त। हीनतप (वि०) अल्प तप, दोषपूर्ण तप। हीनदोषः (पुं०) वंदना दोष। हीनधन (वि०) निर्धन, कमधन वाला। हीनधर्म (वि०) धर्म च्युत। हीनधाम (वि०) आवास विहीन। हीननन्दिन् (वि०) हर्षविहीन। हीनबोध (वि०) समझ की कमी। हीनमन्त्रं (वि०) त्रुटिपूर्ण मन्त्र वाला। हीनमात्रा (वि०) अल्पमात्रा, मात्राओं की कमी। हीनमातृत्व (वि०) मातृत्व विहीन। हीनमोह (वि०) मोह की कमी वाला। हीनयन्त्र (वि०) दोषपूर्ण यन्त्र। हीनयम (वि०) यम/संयमन की कमी। हीनयोनि (वि०) योनि/जन्मस्थान में निम्नता। हीनयौवन (वि०) युवावस्था का अभाव। हीनवर्ण (वि०) रूप-सौंदर्य से विरूप। हीनवादिन् (वि०) दोषपूर्ण कथन करने वाला। हीनशस्त्र (वि०) शस्त्र रहित। हीनशास्त्र (वि०) सिद्धान्त विहीन। हीनसंयम (वि०) संयम का अभाव। हीनसाम्यभाव (वि०) समत्व की अल्पता। हीनसेवा (वि०) तुच्छ लोगों की चापलूसी करने वाला। हीनाधिकमानोन्मानम् (नपुं०) अचौर्यव्रत का एक अतिचार, कम-ज्यादा माप एवं प्रमाण आदि रखना, कम ज्यादा रखना, लोभ के वश होकर हलके बार से तोल देना और भारी बाट से लेना। (त०सू०पृ० १०८) हीन्तालः (पुं०) [हीनस्तालो यस्मात्] छोटा खजूर वृक्ष, जो प्रायः छोटे पोखर आदि के समीप होता है या जहां खुला स्थान भी कीचड़ युक्त हो, वहां ऐसा खजूर का पेड़ उग जाता है। हीय (वि०) ० हीनता हीयमान अवधिज्ञान का भेद। हीरः (पुं०) [ह+क] ० हार, सिंह। ० सर्प। ० इन्द्र, वज्र। (जयो० १०/८८) हीरम् (नपुं०) हीरा, इन्द्र का वज्र एक बहुमूल्य धातु। (जयो० ८/९९) हीरकः (पुं०) हीरा, रत्न विशेष। (जयो०वृ०८/९७) हीरवीरः (पुं०) श्रेष्ठतम् वज्र। (जयो० ३/२५) हीरा (स्त्री०) [हीर+टाप्] लक्ष्मी। ० चिऊंटी। हीलम् (नपुं०) [ही विस्मयं लाति-ला+क] वीर्य। ही ही (अव्य०) [ही+ही] आश्चर्य बोधक अव्यय। . प्रसन्नता ज्ञापक अव्यय। हु (अक०) यज्ञ करना, आहूति देना। ० प्रस्तुत करना, सम्मान देना। ० अनुष्ठान करना। हुंकारधर (वि०) हुंकार लगाने वाला। (जयो० २७/२७) हुंकृतिः (स्त्री०) हुका (जयो० २१) हुड् (अक०) संचय करना, जाना। हुडः (पुं०) [हुड्क ] मेढा। कैदगृह, कारागृह। ० चोर रखने का स्थान। हुडकः (पुं०) वाद्य विशेष। (जयो०७०१०/२१) हुडुक्कः (पुं०) [हुड्+उक्क] एक पक्षी विशेष, दात्यूह। ___० दरवाजे की कुंडी। हुडुत् (नपुं०) [हुड्+उति] सांड की रंभाना। हुण्डः (पुं०) [हुण्ड्+क] व्याघ्र, मेंढा। ० ग्राम शूकर। हुण्डकसंस्थानम् (नपुं०) विरूप आकार, शरीर के अवयव की बनावट में हीनाधिकता। 'अवच्छिन्नावयवं हुण्डसंस्थानं नाम।' (जैन०ल० १२/७) | हुण्डशरीरम् (नपुं०) विरूप आकृति वाला शरीर। For Private and Personal Use Only

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