Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 431
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशिष्ट शब्द अकल्य-नपुंसक। अकारु-धोबी आदि से भिन्न। अकृत्त-अच्छिन्न। अकृष्टपच्य-बिना हल जोते बखरे अपने-आप पैदा होने वाला धान्य। अक्ष-बहेड़ा। आत्मा ०इन्द्रिय। अक्षग्राम-इन्द्रियों का समूह। अक्षणनीय-अछेद्य। अगोष्पद-अत्यंत निर्जन जहां गायों का पहुंचना कठिन है ऐसे दुर्गम वन। अग्रमहिषी-प्रधान देवी। अद्धिप-प्रधान देवी। अभृत्-प्राणी, पक्ष में द्वादशाङ्ग के धारी गणधर देव। अङ्गलास-शरीर की मोड़। अङ्गहार-अङ्ग विक्षेप नृत्यकाल में अङ्गों का विशेष रीति से चलाना। अच्छोद्य-दृढ़तापूर्वक कहकर। अच्युतेन्द्र-सोलहवें स्वर्ग का इन्द्र। अच्युतेन्द्र-अविनाशी, श्रेष्ठ ऐश्वर्य से युक्त, पक्ष में भगवान ऋषभ देव की सोलहवें स्वर्ग के इन्द्र की एक पर्याय। अतिरुन्द्र-अत्यंत विस्तृत। अतिवर्ती-स्वच्छंद प्रवर्तने वाला। अनृजु-कुटिल। अत्युक्त-छन्दों की एक जाति। अदभ्र-विशाल। अदेवमातृक-मेघ की वर्षा पर निर्भर नहीं रहने वाले देश। अधर-शरीर के नीचे का भाग। औष्ठ। अधिश्रित-चूल्हे पर चढ़ाया हुआ। अधीती-अध्ययनकुशला अध्वयोग-छन्द शास्त्र का एक प्रकरण-प्रत्यय। अनञ्जितासित-बिना काजल लगाये ही काले। अनन्तचतुष्ट-१. ज्ञान, २. दर्शन, ३. सुख, ४. वीर्य। अनसूया-ईर्ष्या का भाव। नाम विशेष। अनाराम-बगीचा के रहिता अनाशितम्भर-अतृप्तिकर। अनाशितम्भव-अस्थिर-विनाशशील। अनाशितम्भवम्-अतृप्तिकर। अनाशितम्भवम्-जिसके सेवन से तृप्ति न हो। ऐसा लगता रहे कि और सेवन करूं, और सेवन करूं। अनाश्वान्-उपवास करने वाला। अनाश्वान्-अनशन करने वाला। अनीश्वर-असमर्थ। अनुक्षपम्-क्षपां क्षपामनु अनुक्षपम्, प्रत्येक रात्रि में। अनुजिघृक्षा-स्मरण। अनुमान-स्मरण पूर्वक ज्ञान। अनूप-जल की बहुलतास युक्त देश। अनेकप-हाथी। अनेनस्-निष्पाप। अनेहस्-काल। अन्तर्वनी-गर्भिणी। अन्धस्-भोजन। अन्वयिनिक-जामाता के लिए देव द्रव्य-दहेज। अन्वीपता-अनुकूलता। अपघन-अवयव। अपचिति-पूजा। अपवर्तिका-यष्टिहार का भेद जिसके बीच में निश्चित प्रमाण के अनुसार स्वर्ण, मणि, माणिक्य और मोती बीच-बीच में अन्तर देकर गंथे जाते है। अपुनर्भवता-मोक्षा अप्रतिपत्ति--ज्ञान। अब्द-दर्पण। For Private and Personal Use Only

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