Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 440
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशिष्ट शब्द १२९३ बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश रत्नसमुद्गक-रत्नों का पिटारा। वर्षधर-वृद्ध कञ्चकी अन्तःपुर के कर्मचारी। रत्नावली-रत्नों की वह माला जो सुवर्ण और मणियों से | वर्षवृद्धिदिन-जन्मोत्सव का दिन। चित्रित होती है। व्रत विशेष। वर्षीयस्-वृद्ध। रथकड्या-रथसमूह। वर्धन-प्रमाण, वर्ष देह प्रमाणयोः इत्यमरः। रथाङ्ग-गाड़ी का पहिया। वराककः-दीनप्राणी-बेचारा। रश्मिकलाप-जिसमें ५४ लड़ियां हों ऐसा हार। वरारोहा-उत्तम स्त्री। रसातल-नरक। वरीभृष्टि-अतिपाक। राजक-राजाओं का समूह। वरीवृष्टि-अतिछेदन। राजत-चांदी के बने। वलिभ-वलि-नाभि के नीचे विद्यमान रेखाओं से युक्त। राजन्वती-योग्य राजा से युक्त। वल्लभिका-प्रिय देवांगनाए। राजन्वती-योग्य राजा से युक्त पृथिवी। वल्लूर-सूखा मांस। राजा-चन्द्रमा। वसुन्धरा-पृथिवी। राम-बलभद्र। वंशोचित-बांस के योग्य, पक्ष में कुल के योग्य। रिरंसा-रमण-क्रीड़ा की इच्छा। वाग्मिन्-प्रशस्त वचन बोलने वाला। रूपक-नाटका वाङ्मय-व्याकरण, छन्द और अलंकार शास्त्र के समुदाय को रेचक-भ्रमण, नृत्य करते-करते फिरकी लगाना। वाङ्मय कहते हैं। रैधारा-धन की धारा। वाचंयमत्व-मौनव्रत। रैराट-कुबेर। वाजिवदन-किन्नर। रोदसी-आकाश और पृथ्विी का अन्तराल। वातरशन-दिगम्बर। रौक्म-सुवर्ण सम्बन्धी। वातवल्कला-दिगम्बर। वादिन-शास्त्रार्थ करने वाले। लव-एक प्रमाण विशेष। राम का पुत्र। वार्थ-वृक्ष सम्बन्धी वृक्षस्येदं वाक्षम्। ललिताङ-सुंदर, शरीर वाले, पक्ष में भगवान ऋषभदेव की वालधि-पूंछ। एक देव-पर्याय का नाम। वालधि-पूंछ। ललिताङ्गक-सुंदर शरीर का धारक। वाल्लभ्यलाञ्छन-पतिपने का चिह्न। ललिताङ्गचर-पहले का ललितांग। वास्तुविद्या-मकान बनाने की विद्या। लुब्धक-म्लेच्छों की एक जाति। विकच-विकसित। लौकान्तिक-ब्रह्म स्वर्ग में रहने वाले देवों की एक जाति। विकृत्य-विक्रिया करके। लौकायतिकी-चार्वाक मत सम्बन्धी। विचक्षण-विद्वान्। विचतुरक्रीडा-विशिष्ट चातुर्यपूर्ण क्रीडा। विजयच्छन्द-जिसमें पांच सौ लडियां होती हैं ऐसा हार। इसे वज्रसङ्क-वज्र के समान सुदृढ़ जांघों वाले, पक्ष में भगवान् ऋषभदेव की पूर्वपर्याय का नाम। नारायण तथा बलभद्र पहनते हैं। वजनाभि-वज्र के समान स्थिर नाभि से युक्त, पक्ष में भगवान् वितनु-शरीर रहित। वितस्ति-बारह अंगुल के एक वितस्ति होती। ऋषभदेव की पूर्वभवपरम्परा का एक नाम। वज्राकर-हीरे की खान। विदेह-शरीर रहित मुनि। वज्री-इन्द्र। विधुवीधः-चन्द्रमा के समान शुक्ल। वयस्या-तरुण अवस्था से युक्त। विद्रुम-मूंगा। वर्ण-ब्राह्मणादिवर्ण, पक्ष में अक्षर। विधियः (विधि)-बुद्धिहीन। व For Private and Personal Use Only

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