Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 439
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश भिसमृणाल भीमयोगी भयंकर सांप। भुजिष्या चेटी । भूतवादी पृथिव्यादी चार भूतों के द्वारा जीव की उत्पत्ति मानने वाला चार्वाक । भूतोपसृष्ट- जिसे प्रेत की बाधा है। भोक्ता ( भोक्तु) भगवान् के १००८ नामों में एक नाम। म मकराकर - समुद्र । मङ्गलाष्टक - आठ मंगलद्रव्य । १. छत्र, २. ध्वज, ३. कलश, ४. चामर, ५. सुप्रतिष्ठक (ठौना ), ६. भृंगार (झारी), ७. दर्पण और ८. तालपत्र (पंख) मणिसोपान - जिसमें नीचे सोने के पांच दाने लगे हों ऐसा फलकहार। मदनोत्कोचकारिन्- काम के उद्रेक को करने वाला । मधुकृत्- मधुमक्खियां । मधुव्रतं - भ्रमर, पक्ष में मद्यपायी । मध्येयवनिकम्-परदा के भीतर। मनु- भगवान् आदिनाथ। मनु- भगवान् वृषभदेव का पुत्र । मन्द्र- गम्भीर | मम्मट-काव्य विचारक। मन्मनालपित- अव्यक्त- तोतली बोली। मन्वन्तर- एक कुलकर से दूसरे कुलकर के होने का मध्यवर्ती काल । मरीमृजा :- बार-बार मार्जन करते हुए। मरुद्-देव। www.kobatirth.org मरुमरीचिका- मृगतृष्णा । मसूण-स्निग्ध, चिकनी। महत्तर- प्रधान पुरुष। महाङिद्ध्रप-कल्पवृक्ष। महाप्रज्ञ - बुद्धिमान | महाप्रज्ञप्तिविद्या - विद्याधरों को सिद्ध होने वाली विद्याओं में से एक प्रमुख विद्या महाप्राव्राज्य- दैगम्बरी दीक्षा । महार्धक-महामूल्य। महास्थपति- चक्रवर्ती का रत्नस्वरूप विश्वकर्मा । माणव - जिसमें २० लड़ियां हों ऐसा हार। १२९२ माणवक-बालक । मातरिश्वा - वायु | मातुलिङ्ग-बिजौरा । मार्गद्वय - १. शब्दालंकार, २ . अर्थालंकार । मार्तिकै अच्छी मिट्टी से बने हुए। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मारुति पवन कुमार । मित्रमण्डल- सूर्यविम्ब । मुक्त-अष्टकर्म से रहित शुद्ध जीव जिन्हें मोक्ष प्राप्त हो चुका होता है। मुनीनेन मुनीन्द्र सूर्य मुनि-इन-इन । मुरज-मृदंगाकार शिखर । मूर्द्धज-बाल | मूषासांचा (धातुओं के गलाने का पात्र ) । मृग- पशु । मृगयु- शिकारी । मृषा- झूठ । मेधाविनी अत्यंत बुद्धिमती । मैरवी मेरु सम्बंधी। मोच कदली। मौख-मुख सम्बन्धी य यतिचर्या -मुनियों के आहार की विधि | यवीयस् - तरुण । यशस्य यश को बढ़ाने वाला। यादस्-जलजन्तु। यामिनी रात्रि । यायजूक- पूजा करने वाले। युग- जुंआरी ( चार हाथ प्रमाण) । युग्यक - पालकी । युतसिद्ध-पृथक् सिद्ध । योग- समाधिमरण । ० जोड़ मिलान । योग अप्राप्त प्राप्य वस्तु की प्राप्ति होना । योगबीज - ध्यान के निमित्त। विशिष्ट शब्द योगीन्द्र - राजा वज्रनाभि के पिता वज्रसेन महाराज मुनि होने पर योगीन्द्र कहलाये। ०एक कवि For Private and Personal Use Only र रजस्वला पराग से सहित, पक्ष में रजस्वलाएं मासिक धर्म से युक्त स्त्रियां।

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