Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 442
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशिष्ट शब्द १२९५ बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश श्रद्धादिगुणसम्पन्न-१. श्रद्धा, २. शक्ति, ३. भक्ति, ४.. विज्ञान, ५. अलुब्धता, ६. क्षमा और ७. त्याग इन सात गुणों से युक्त। २०१८१, ८२, ८३, ८४। श्राद्ध-श्रद्धा से युक्त। श्रायंस-ग्यारहवें श्रेयान्सनाथ तीर्थंकर सम्बन्धी पुराण। श्रीधर-लक्ष्मी के धारक, पक्ष में भगवान् ऋषभदेव की पूर्वभव परम्परा में एक देव पर्याय का नाम। कवि। श्रेयान् (श्रेयान्स)-कुरुजांगल देश हस्तिनापुर के राजा सोमप्रभा का छोटा भाई। श्रोता के आठ गुण-१. शूश्रूषा, २. श्रवण, ३. ग्रहण, ४. धारण, ५. स्मृति, ६. ऊह,७. अपोह,८. निर्णीत। शूना-स्थूल। श्वभ्र-नरक। श्वाभ्री-नरकगति। श्वेतभानु-चन्द्रमा। षट्कर्म-असि, मषि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य और विद्या-ये । छह कर्म हैं। षड्भेदभाव-१. जीव, २. पुद्गल, ३. धर्म, ४. अधर्म, ५. आकाश, ६. काला षाड्गुण्य-सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव, आश्रय ये छह गुण हैं। सप्तकक्षा-हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल, बैल, गन्धर्व, नर्तकी। सप्तनय-१. नैगम, २. संग्रह, ३. व्यवहार, ४. ऋजुसूत्र, ५. शब्द, ६. समाभिरुढ़, ७. एवं भूत। सप्तार्चिष्-अग्नि। २।९। सप्तार्चिष्-अग्नि। सभवान्-पूज्य। सभावना-अहिंसादि व्रतों को पच्चीस भावनाओं से सहित। सभावना-सभाओं के रक्षक देव। समय समयसुन्दरगणि। समयसार, सिद्धान्त। समया-समीप २२।२०७। समवृत्त-जिसके चारों चरण एक समान लक्षण वाले हों ऐसा। समा-काल विभाग। समाहित-एकाग्रचित्त। समिद्ध-अत्यंत तेज। समीहा-चेष्टा। सर्पण-पृथिवी पर सरकना। सर्वज्ञोपज्ञ-सर्वज्ञ के द्वारा प्रथम उपदिष्ट। सर्वार्थसिद्धिनाथ-सब सिद्धियों के स्वामी, पक्ष में भगवान् ऋषभदेव की पूर्वभव-परम्पराओं वे सर्वार्थसिद्धिनामक अनुत्तर विमान के स्वामी हुए। सरस्वत्-समुद्र सलय-ताल से सहित। साकूता-अभिप्रायवती। साकेत-एक नगरी। साचिप्य-सहायता। सात्त्विकबल-आत्मबल। साधन-सेना। साधन-सेना। साधारण-देश का एक भेद। साध्वस-भय। सानुजन्मा-छोटे भाईयों से सहित। सामायिक-चारित्र का एक भेद। सामि-आधा। सारव-आरव-शब्द से सहित। सारव-सरयूनदी सम्बंधी। सार्व-सर्वहितकारी। सार्वभौमत्व-समस्त पृथिवी का स्वामित्व-चक्रवर्तीपना (सर्वस्या भूमेरधिपः सार्वभौमस्तस्य भावस्तत्त्वम्) स संक्रन्दन-इन्द्र। सचार-पादविक्षेप से सहित। सजानि-स्त्री सहित। सजानि-स्त्री सहित (जायया-सहितः सजानि:) सत्त्यङ्कार-वयाना। सत्त्वानुषड़ीगुण-सत्यं शौचं क्षमा त्यागः प्रज्ञोत्साहो दया दमः। प्रशमो विनयश्चेति गुणाः सत्त्वानुषङ्गिणः।। सदाद्य-सत् को आदि लेकर-सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव, अल्पबहुत्व, निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति, विधान-ये अनुयोगद्वार। सधर्मा-समान। सध्रीची-सहचरी, श्रीमती। सनाभि-बन्धु। सपर्या-पूजा। For Private and Personal Use Only

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