Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 441
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश १२९४ विशिष्ट शब्द वैशाखस्थ-पैर फैलाकर खड़े हुए। व्यतिकर-कार्य। व्यलीक-असत्य। व्यातुक्षी-फाग। व्याधि-शारीरिक व्यथा। व्याहृति-वाणी-दिव्यध्वनि। व्युत्सृष्टकाय-जिसने शरीर से ममताभाव छोड़ दिया है ऐसा मुनि। विनेय-शिष्य। विप्रलब्ध-ठगा हुआ। विप्रलम्भक-वंचक-ठगने वाले। विभावरी-रात्रि। विमान-प्रमाण रहित-अत्यंत विस्तृत, विगतं मानंयस्य सः। विमान-प्रमाण करता हुआ। वियुत-दस लाख। वियुतासु-मृत। वियोग-नियम से करने योग्य कार्य। विछोह। विरूपक-निकृष्ट-नीच। विवक्षा-कहने की इच्छा, वक्तुमिच्छा विवक्षा। विवक्षु-वक्तुमिच्छुर्विवक्षुः, धारण करने का इच्छुक। विविक्ता-जानने के इच्छुक। विशङ्कट-विशाल। विशिख-बाणा विश्राणन-दान। विश्वजनीन-सर्वहितकारी। विश्वदिक्कम-सब दिशाओं में। विश्वनाथ-काव्यानुशासनकर्ता। विश्वभर्तृ-भगवान् वृषभदेव। विश्वरीश-विश्वरी-पृथिवी का ईश। विश्वास्या-विश्वतोमुखी, जिसके चारों तरफ गोपुरद्वार थे (पक्ष जो प्रत्येक विषय का प्रतिपादन करने वाली थी) विश्वाण-आहार। विष्वाण-भोजन। विष्टि-भोजन। विष्टिपुरुष-मजदूर। विसंस्थुलासनस्थ-नाना प्रकार की अटपटे आसनों से स्थित। वृत्रहन्-इन्द्र। वृषभकवि-श्रेष्ठ कवि। बृंहित-हाथी की गर्जना। वेणुध्मा-बांसुरी बजाने वाले। वेधस्-भगवान् वृषभदेव। वैदग्धी--शोभा। वैदग्धी-सौन्दर्य-शोभा। वैदग्ध्य-चतुराई। वैयात्य-धृष्टता-लज्जा! शङ्ख-नौ निधियों में एक निधि। शतधीचर-शतधी मन्त्री का जीव। (भूतपूर्व चरट्) शतमख-इन्द्र। शताध्वर-इन्द्र। शयु-अजगर (दण्ड विद्याधर का जीव)। शरद्-वर्ष 'हायनोऽस्त्री शरत्समा'। शरीरान्वयिगुण-वपुः कान्तिश्च दीप्तिश्च लावण्यं प्रियवाक्यता। कलाकुशलता चेति शरीरान्तवयिनो गुणाः। शल्क-खण्ड। शवर-म्लेच्छों की एक जाति। शाड्वल-हरी-हरी घास से युक्त। शातमातुर-सौ माताओं का पुत्र। शातित-तोड़े हुए, गिराये हुए। शार-विविध वर्णवाली। शार्वर-शर्वरी-रात्रि सम्बन्धी। शिखावल-मयूर। शिखावल-मयूर। शिल्लोच्चय--पर्वत। शिवा-शृगाल। शीतक-मन्द कार्य में देर करने वाला। शीतलिका-व्यंजन पंखा। शीर्षक-यष्टि नामक हार का एक भेद। शीर्षकयष्टि-जिसके बीच में एक बड़ा मोती लगा हो ऐसी एक लड़की माला। शुचि-ग्रीष्म ऋतु-आषाढ़। पवित्र, ०शुद्ध। शुद्धांत-अन्तःपुर। शुभंयु-कल्याण से युक्त, शुभ मस्ति येषां ते शुभंयवः 'अहंशुभमोयुर्स' इति मतुवर्थ युप्रत्यय। शूद्रक-एक नाटककार। For Private and Personal Use Only

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