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विशिष्ट शब्द
१२८९
बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश
दोष-भुजा। दोष्-भुजा। दोहद-गर्भकालीन इच्छा। दौर्गत्य-दारिद्र्य। द्युम्न-सुवर्ण।
ध धनुर्वेद-शस्त्र विद्या। धनुष्-चार हाथ प्रमाण। धम्मिल-बालों का बंधा हुआ जूड़ा। धात्रीफल-आंवला। धारागृह-फव्वारा। धैनुक-गायों का समूह। धौरेय-श्रेष्ठ।
न
दम्य-बछड़ा। दम्यक-बछड़ा। दर-कुछ। दवथु-सन्ताप। दवीयसी-अत्यंत दूर रहने वाला। दशप्राण-काव्य के दस गुण। १. श्लेष, २. प्रसाद, ३. समता।
४. माधुर्य, ५. सुकुमारता, ६. अर्थव्यक्ति, ७, उदरता,
८. ओज, ९. कान्ति और १०. समाधि। दशा-बत्ती, पक्षे अवस्था। दशावतार-भगवान् ऋषभ देव के महाबल आदि १० पूर्व भव। दात्यूह-कृष्ण वर्ण का एक पक्षी। द्वादशगण-समवसरण में भगवान् के चारों ओर १२ सभा
मण्डप होते हैं जिनमें क्रम से-१. गणधरादि मुनिजन, २. कल्पवासिनी देवियां, ३. आर्यिकाएं और मनुष्यों की स्त्रियां, ४. भवनवासिनी देवियां, ५. व्यन्तरिणी देवियां, ६. ज्योतिष्क देवियां, ७. भवनवासी देव, ८. व्यन्तर देव, ९. ज्योतिष्कदेव, १०. कल्पवासी, ११. मनुष्य और १२ पशु बैठते हैं। यही द्वादशगण
कहलाते हैं। दाम-करधनी। ०माला। दिध्यासु-ध्यान करने के इच्छुक। दिव्य-स्वर्ग सम्बन्धी। ०देव सम्बंधी, व्यथेष्ठ। दिव्यचक्षुः-अवधि ज्ञान रूपी नेत्र को धारण करने वाले। दिव्यहंस-अहमिन्द्र भगवान् आदिनाथ का जीव। दिव्याष्टगुण-१. अनन्त ज्ञान, २. अनन्तदर्श, ३. अव्याबाध
त्व, ४. सम्यक्त्व, ५. अवगाहनत्व, ६. सूक्ष्मत्व, ७.
अगुरुलघुत्व, ८. अनन्त वीर्य। दिव्यास्थानी-समवसरणभूमि। द्विरूपोपयोग-१. ज्ञानोपयोग, २. दर्शनोपयोग। दीधितिमालिन्-सूर्य। दीर्घनिद्रा-मृत्यु। दुर्गत-दरिद्र। विक्षोभ। दूष्यकुटी-कपड़े की चांदनी। दृब्ध-रचित। देव-मेघ। देवच्छन्द-जिसमें मोतियों की इक्यासी लड़ियां हों ऐसा हार। देवधिष्ण्य-देवगृह-जिन मन्दिर। देवमातृक-मेघ कीवर्षा पर निर्भर रहने वाले।
नक्षत्रमाला-इस नाम का एक हार। नक्षत्रमाला-जिसमें २७ लड़ियां हों ऐसा हार। नदीन-समुद्र। नन्दन-पुत्र। नभस्वत्-वायु। नयचक्र-नीति से युक्त सुदर्शन चक्ररत्न (पक्ष में नैगमादि
नयों का समूह)। नलिन-कमल। नवकेवललब्धि-१. केवलज्ञान, २. केवलदर्शन, ३. क्षायिक
सम्यक्त्व, ४. क्षायिकचारित्र, ५. क्षायिकदान, ६ क्षायिकलाभ, ७. क्षायिकभोग, ८. क्षायिकउपभोग,
९. क्षायिक वीर्य। नवपुण्य-नवधाभक्ति-१. प्रतिग्रहण-पडिगाहूना। २. उच्च स्थान
पर बैठाना, ३. पैर धोना, ४. अष्टद्रव्य से पूजा करना, ५. नमस्कार करना, ६. मनशुद्धि, ७.
वचनशुद्धि, ८. कायशुद्धि और ९ अन्न जलशुद्धि। नष्ट-छन्दशास्त्र का एक प्रकरण प्रत्यय। नाभि-नाभि-उदरगत। नायक-हार के बीच का बड़ा मणि। नार्पत्य-राज्य, नृपतेभविः कर्म वा नार्पत्यम्। निकृति-कपट। निधुवन-सम्भोग। निभमात्र-छलमात्र।
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