Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 435
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश १२८८ विशिष्ट शब्द गीर्वाणाधिप-इन्द्र। गुच्छ-जिसमें बत्तीस लड़ियां हों ऐसा हार। गुरु-पिता। गुरु-पिहितानवमुनि। गुरु-पिता। गुह्यक-देव विशेष। गृहकोकिल-छिपकली। गोक्षर-गोखुरु-कांटेदार एक वनस्पति। गोमक्षिका-गाय पर बैठने वाली एक खास प्रकार की मक्खी, जिसे ग्रामीण लोग बघही कहते हैं। घ घनात्यय-शरत्कारला जामी-बहन। जाल्म-नीच। जिघृक्ष-ग्रहण करने के इच्छुक। जिनजननसपर्या-जिनेन्द्र देव की जन्म कालीन पूजा। जीमूत-मेघ। जीव के २ भेद-१. मुक्त, २. संसारी। जीवक अधिगम के उपाय-सत्, संख्या आदि अनुयोग, प्रमाण, नय और निक्षेप। त चक्रध्वज-चक्र के चिह्न से सहित ध्वजाएं। चक्राह्वा-चकवी। चतुरस्रिका-चार कोन वाली। चतुष्ट्य-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक् तप इन चार आराधना रूप। चरमाङ-अन्तिम शरीर धारण करने वाला-तद्भवमोक्षगामी। चषक-पानपात्र-कटोरा ग्लास आदि। चामीकर-सुवर्ण। चार्वी-सुंदरी। चित्तजन्मा-काम। चैत्यद्रुम-चैत्य वृक्ष-जिसके नीचे प्रतिमा विराजमान रहती है। चोद्यचुञ्चत्व-प्रश्न करने की निपुणता। तनूनपाद-अग्नि। तरलप्रतिबन्धयष्टि-जिसमें सब जगह एक समान मोती लगे हों ऐसी एक लड़वाली माला। तरलाप्रबन्ध-यष्टि नामक हार का एक भेद। तल्प-शय्या। तानव-कृशता। तान्त्र-तन्त्री सम्बन्धी, तन्त्र्या अयं तान्त्रः। तामिम्रपक्ष-कृष्णपक्षा तामिस्रेतरपक्ष-कृष्ण और शुक्ल पक्ष। तायिन्-रक्षक। तारवी-तरु-वृक्ष सम्बंधी। तारा-आंख की पुतली। तिरस्करिणी-परदा। तिरीट (किरीट)-मुकुट।। तीरिका-बाण। तुणव-वाद्य विशेष। तुष्टूषु-स्तुति करने का इच्छुक। तृण्या-तृणों का समूह। तोक-पुत्र। तौयान्तिकी-आकण्ठ जलपूर्ण। त्रिकूट-लंका का आधारभूत-पर्वत। त्रिदोष-वात, पित्त, कफ। त्रिरत्न-सभ्यग्ज्ञान और सम्यक्चरित्र। त्रिरूपमुक्त्यङ्ग-१. सम्यग्दर्शन, २. सम्यग्ज्ञान, ३. सम्यक् चारित्र। त्रिवर्ग-धर्म, अर्थ, काम। त्रिवेद-तीन वेद-ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद। त्रिसाक्षिकम्-आत्मा, देव और सिद्ध परमेष्ठी की साक्षीपूर्वक। छान्दाविचित-छन्दों का समूह। छाया-कान्ति। जगत्त्रय-ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक, अधोलाक। जनुप्यन्ध-जन्मान्धा जन्य-पुत्र। जलवाहिन्-मेघ। जलशया-जड़ अभिप्राय वाले, पक्ष में जल से युक्त। जल्पाक-वाचाल, बहुत बोलने वाला। जाङ्गल-जल की दुर्लभता से युक्त देश। जातुषी-लाख की बनी हुई। जानभूमि-देश। दम-इन्द्रियों का वश करना। दम्य-बछड़ा। For Private and Personal Use Only

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