Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 433
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश इन्द्रकोश- बुरज इन्द्रगोप- बरसात में निकलने वाला लाल रंगा का एक कीड़ा बीरबहूटी। इन्द्रच्छन्द-हार विशेष । इन्द्रच्छन्द - जिसमें लड़ियां हों ऐसा हार। यह हार सबसे उत्कृष्ट हार है इसे इन्द्र, चक्रवर्ती तथा तीर्थकर पहनते हैं। इन्द्रच्छन्दमाणव- इन्द्रच्छन्द हार के बीच में एक मणि लगा देने पर इन्द्रच्छन्दमाणव कहलाता है। इन्द्रमह-कार्तिक का महीना। इन्द्रवृषभ- इन्द्रश्रेष्ठ । इन्द्रस्तम्बेरम- इन्द्र का हाथी ऐरावत। इषुधि - तरकश | इष्टि - पूजा । उक्ता छन्दों की एक जाती। उडुप- चन्द्रमा । उक्षन्- बैल ! ईडा-स्तुति | ईडा-स्तुति | ईडिडियन् स्तुति करने की इच्छा करता हुआ। ईति - अतिवृष्टि, अनावृष्टि, मूषक, शलभ, शुक और निकटवर्ती राजा । ये छह ईतियां कहलाती है। उ उक्ष बैल उत्कर- सूंड ऊपर उठाये हुए। उत्प्रोथ - जिसकी नाक ऊपर की उठी हुई है। उदय-प्रभात | www.kobatirth.org उदन्या - प्यास । उद्गम पुष्प आगम द्वार उद्व-प्रशस्त - श्रेष्ठ। उद्वाह-विवाह । उद्रिक्त तीव्र उदय से युक्त । उद्बोधनालिका - प्रज्वलित करने वाली नदी ऐसी नली जिससे सुनार लोग अग्नि को फूंकते हैं। उपघ्न- आश्रय । उपनता उपस्थित उपमा - एक अलंकार । उपशीर्षक- यष्टि नामक हार का एक भेद। १२८६ विशिष्ट शब्द उपशीर्षकयष्टि- जिसके बीच में क्रम-क्रम से बढ़ते हुए तीन मोती हों ऐसी एक लड़ी वाली माला । उपह्वर- एकान्त स्थान । उपधि-परिग्रह उपायन-भेंट उपहार। उपालम्भ-दोष देना। उपोद्धात प्रस्तावना उरसिल-चौड़े वक्षस्थल वाला । उम्र-किरण। ऊर्ध्वकाय ऊंचा शरीर! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ऊ ए एकचर्या - एक विहार, अकेले विहार करना । एकद्वित्रिधुक्रिया - छन्दशास्त्र का एक प्रकरण-प्रत्यय। एकध्य - एकपना । एकावली - यष्टि नामक हार का भेद, एक लड़ी माला जिसके बीच में एक बड़ा मणि लगता है। एनस्- पाप । For Private and Personal Use Only ऐ ऐरावत सफेद वर्ण का हाथी ० इन्द्र का हाथी | ऐरावती ऐरावत हाथी सम्बन्धी । 7 ओ ओकस्- स्थान औ औदय-उदयाचल सम्बन्धी । औरभ्र- प्रातः काल सम्बन्धी । क कणय- एक हथियार का नाम जिससे लकड़ी छीली जाती है। कण्ठीरव-सिंह। कण्ठ्य - कण्ठ स्थान से उच्चारित। कद- कुवचन बोलने वाले कुत्सितं वदन्तीति कद्रदाः । 1 कनक स्वर्ण कनकराजीव-स्वर्ण कमल । कपिशीर्ष-कोट का अग्रभाग कपोलशब्दक- गालरूपी दर्पण | करक-झारी। करक- ओला ।

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