Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 314
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सरट: सरट: (पुं०) [सृ+अच्] ०पवन, वायु । ० छिपकली गिरगट (जयो० ५/१३) " । सरटि (पुं०) (सु+अटिन् ] ०पवन, वायु सरण (वि०) [सु+ ल्युट्] गतिशील, जाने वाला, सरणम् (नपुं०) प्रगतिशील, गतिशील। ० लोहे की जंग | सरणिः (स्त्री० ) [ ऋ + नि:] रास्ता, पथ, ० नसैनी, सीढ़ी। (जयो० १ / ८९ ) ० पंक्ति। ०कण्ठरोग। सरंड: (पुं०) [सृ-अण्डच्] पक्षी ० धूर्त, लम्पट ० एक आभूषण मार्ग। ० उग्र | ० क्रोधपूर्ण ० प्रसन्न । www.kobatirth.org सरण्य (पुं०) [सु+अन्युच्] ०पवन, वायु । ० मेघ, बादल। सरलिः (स्त्री० / पुं०) एक हाथ का माप । सरथ (वि०) समानो रथो यस्य रथेन सह वा) एक ही रथ पर सवार । , सरन्धः (पुं०) गहर, गर्त छिद्र (जयो० २४/२७) सरभस् (वि०) [सहरभसेन] वेगवान्, फुर्तीला । ० प्रचण्ड | बहने वाला। सरभसम् (अव्य०) अत्यन्त वेग सरमा ( स्त्री० ) [ सृ + अम्+टाप्] एक नाम विशेष । सरयु (सृ+अयु) हरा, पवन, वायु ० (स्त्री०) सरयु नदी जिसके किनारे अयोध्या नगरी बसी हुई है। सरल (वि० ) [ सृ+अलच् ] सीधा, वक्रता रहित, ऋजु । (जयो०वृ० ८/४४ ) ० निश्छल मनो वचः शरीरं स्वं सर्वस्मै सरलं भजेत्। (सुद० १२५) ० निष्कपट | ११६७ ० सीधा-सादा। ० अनक निष्पाप । 'अनकं कष्टवर्जितं सरलमित्यर्थः ' (जयो० १/१०९) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरल: (पुं०) सरल वृक्ष, चीड़ तरु । ० अग्नि । सरलत्व (पुं०) ऋजुता युक्त । ( हित० ४५ ) सरलपरिणामः (पुं०) ऋजुता के भाव (जयो०वृ० ८/०४४) सरस् (नपुं० [सृ+असुन्] तटाक, तालाब, सरोवर पोखर सरस (वि० ) [ सेन सह ] रसवती । (जयो० ३/४७) ० ०सरल (सुद० २/६) ० सजल (जयो०० ३/४७ ) ०उत्तम (सुद० ७८) रसपूर्ण (जयो०वृ० १/४) सरस्वती सरसम् (नपुं०) झील, तटाक, तालाब । सरसता (वि०) रस सहित रस से परिपूर्ण , सरसत्व (वि०) सरसता से संयुक्त (जयो०वृ० १४/५१) नम्रता (जयो० १२/२७) निम्नगेव सरसत्वमुपेता' (सुद० १२२४३) सरसभाव: (पुं०) स्वभाव / सरसतया सकामभावेन (जयो०वृ० ४/१७) ०पूर्ण रस सहित स्वभाव सरल परिणाम | सरसहास (वि०) प्रिय हास्य (जयो० ४/५३) सरसा (वि०) शृंगार रसवती (जयो० १०/११०) सरसी (स्त्री० ) [ सरस्+ ङीष् ] सरोवरी, (सुद० २/१) तटाकी, पोखरी स्रोतो विमुच्य स्रवणं स्तनान्ताद यूनामिदानीं सरसीति कान्ता' (वीरो० १२/१३०) " सरसीरुहम् (नपुं०) कमल, सरोज । सरसलेश: (पुं०) माधुर्य स्थान (जयो० ६/४६) सरसेङित (वि०) शृंगारमयचेष्टा | (जयो० २२ / १८ ) सरस्वत् (वि० ) [ सरस्+ मतुप् ] सजल, जलयुक्त। ०रसीवा, रसयुक्त, स्वादिष्ट । सरस्वत् (पुं०) उदधि, समुद्र । (जयो० ९/६१) For Private and Personal Use Only ०सर, तालाब, नद। सागर सरस्वती (स्त्री०) [सरस्वत् ङीप् ] ०भारती वाणी, पद्मासिनी। (जयो० १९ / २८) (जयो० २/४१) ०वचोऽभिदेवता (जयो०वृ० १२/२) ०गी (जयो०वृ० १२/१३ ) ०वागेश्वरी ० वागिनी । ० अम्बा (जयो० १२/२) अम्बेश्वरी ० मयूरवाहिनी, चतुर्भुजावती, ० कलापिनाभी, कल्याणी ।

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