Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 369
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra स्फुरित स्फुरित (भू०क० कृ०) (स्फुर्+क्त] कपित, प्रकम्पित, हिलता हुआ। ० चमकता हुआ । स्फुरद्यश: (पुं०) विकसित तारुण्यकीर्ति (जयो० १०/६१) स्फुरायमाण- सुशोभित होता हुआ। (सुद० १/१४) स्फुरदिष्टि ( स्त्री०) भाग्यसत्ता, भाग्यवान्। (जयो० २८/ ७) स्फुच्छ्रे (अक० ) फैलना, विस्मृत होना । ० भूल जाना, विस्मृत होना। स्फुर्ज् (अक० ) गरजना, ध्वनि करना। विस्फोट होना, धड़धड़ाना। ० दहाड़ना। ० प्रकट होना बोधः स्फूर्जाति चिद्गुणो भवति यः प्रत्यामवेद्य सदा (मुनि० १४ ) स्फुल् (अक० ) कांपना, धड़कना लपकना मार डालना। स्फुलम् (नपुं० ) [ स्फुल् क ] तंबू, डेरा शिविर | स्फुलनम् (नपुं०) कांपना, फटकना, धड़कना । स्फुलिङ्गः (पुं०) चिनगारी, अग्निकण (सुद०२/१७) o विद्युत्, बिजली । (जयो० ६ / ३६ ) • तिलगा। (जयो० १६ / ६५ ) तल्लिङ्गानि तदानीं स्फुलिङ्गनीति निरगच्छन् । स्फुलिङ्गम् (नपुं०) चिनगारी, अग्निकण । www.kobatirth.org स्फूर्ज: (पुं०) [स्फुर्ज्+घञ्] मेघ गर्जना ० इन्द्र वज्र स्फुर्जथुः (पुं०) मेघ गर्जना, गड़गड़ाहट । स्फुर्ति: (स्त्री० ) [ स्फुर्+क्तिन्] उत्कण्ठा। (जयो० २७/४६ ) ० उत्साह, उमंग। ० धड़कन, स्फुरण, थरथराहट । • छलांग, चौकड़ी प्रफुल्ल भाव । स्फुतिंकर (वि०) रोमांच योग्य (जयो०वृ० ११/८७) योगोऽनयोः स्फूर्तिकरो विशेषात् । (जयो० १७/८) स्फुर्तिमत् (वि० ) [ स्फूर्ति + मतुप् ] धड़कने वाला। विक्षुब्ध । ० कोमल हृदय। स्फेयस् (वि० ) [ अतिशयेन स्फिर: ईयसुन्] प्रचुरतर, प्रबल, विस्तारजन्य स्फेष्ठ (वि० ) [ स्फिर + इष्ठन् ] प्रबल, प्रचुरतर, अत्यन्त विस्तृत । स्फोट: (पुं०) [ स्फुट करणे घञ्] फूट निकलना, फूट पड़ना। • अभिव्यक्ति (जयो०वृ० ११ / ६० ) • विकास। ० सूजन, कौड़ा, रसौली । ० शब्द व्यञ्जना । १२२२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्मरायुधः स्फोटक : (पुं०) फोड़ा, पूति। (जयो०वृ० २/५) स्फोटन (वि०) प्रकट करने वाला, फूटने वाला, विकसित होने वाला। स्फोटनम् (नपुं०) फाड़ना ० विकसित होना, चटकना । ० फटका, विदीर्ण होना। स्फोटनी (स्वी०) [स्फोटन ङीप्] बरमा, छिद्र करने का औजार स्फोटयितुम् - विकासवितुम् (जयो० १२८/३) स्फोटिका ( स्त्री० ) [ स्फुट् + ण्वुल्+टाप् इत्वम् ] एक पक्षी, कठफोड़ा पक्षी । स्म (अव्य० ) [ स्मि+ड] वर्तमान कालिक क्रियाओं का भूतकाल में परिवर्तित करने के लिए लगाया जाने वाला निपात पातालमूलमनुखातिकया स्म सम्यक् (सुदं० १ / ३६) स्मयः (पुं०) अभिमान, अहंकार, गर्व। ( सुद० १३४ ) (जयो० १७/११) आश्चर्य, घमण्ड, विस्मय (जयो० १/६३) स्मयकः (पुं०) अभिमान, अहंकार, गर्व-सा पदानि परिदृष्टवतीव प्रस्थितस्थ सहसा स्मयकस्य (जयो० १५/९९) ० रहस्य भाव, आश्चर्य-सम्पादयत्यत्र च कौतुकं नः करोत्यनूढा स्मयकौतुकं न । (सुद०२ / २१ ) स्मयलोपिन् (वि०) अभिमान नष्ट करने वाली-सम्बभूव वचनं नभसोऽपि निम्न रूपतस्तत्स्मयलोपि । (सुद० १०८) स्मयसद्मम् (नपुं०) आश्चर्य का स्थान स्मस्य आश्चर्यस्य सद्य स्थानं यत्र सा । (जयो०वृ० ५ / २८) स्मयसारिणी (स्त्री०) गर्वकुल्या (जयो० १७/११ ) स्मयोच्छेदपटु (वि०) दुरभिमान नष्ट करने में समर्थ- स्मयस्य दुरभिमानस्योच्छेदे निराकरणे पटु समर्थ (जयो० १६ / ३५ ) स्मर: (पुं० ) [ स्मृ भावे अप्] काम। (जयो० ३/४९) ० कामदेव, (जयो० १/४५, सुद० १/४०) स्मरस्य वागुरा वाला लावण्यसुमनोलता | (जयो० ३/३९) ० प्रत्यास्मरण, स्मरण, याद। स्मरकल्प: (पुं०) कामावस्था (सुद० १२२) स्मरक्रिया (स्त्री०) काम क्रिया, भोगसक्ति की भावना (जयो० १७/२७) For Private and Personal Use Only स्मरकूपकः (पुं०) स्त्री की योनि भग स्मरागारम् (नपुं०) स्त्री की योनि । स्मरादेशकर (वि०) रतीश शासन प्रवर्तक। (जयो० १६/४७) स्मरायुधः (पुं०) वज्र, ० काम बाण (वीरो० ६ / २३) स्मरायुधैः पञ्चतया स्फुरद्भिः । (वीरो० ६ / २३)

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