Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 373
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra स्वः www.kobatirth.org " ० प्रधान (वीरो० २१/२४) विभेति मरणमिति श्रुत्वा स्वस्य सदा पुनः स्वं स्वं धाम ययुः समर्त्य (दयो० वीरो०७/३८) स्वः (पुं०) आत्मीयजन, कुटुम्बिजन, बांधव । स्वक (वि० ) [ स्व + अकच्] अपनी निजी । (समु० ७/७) परिवदेदिह कोऽयमजं स्वकम्। स्वकम्पन् (पुं०) पवन, वायु स्वकर (वि०) अपना हाथ - स्वकरे कुसुमस्रजः। (सुद० ४ / २) ० स्वकिरण, स्वकान्ति, स्वहस्त । (जयो० ११/७) स्वकर्त्तव्य-परायणाम् (नपुं०) अपने कार्य में निपुण । ( सुद० ९४ ) स्वकर्मन् (नपुं०) अपना कार्य (वीरो० १६ / १० ) स्वकर्मसत्ता (स्त्री०) अपनी कर्मशैली की प्रभुता (सुद० ५/२१) स्वकर्मिन् (वि०) स्वार्थी । स्वकार्यम् (पुं०) अपना काम । स्वकीय ( वि० ) [ स्वस्य इदं स्व-छ-कुक् आगम: ] अपने (दयो० ९) आत्मीय, निज अपना (जयो०वृ० १३/१२) (जयो० १ / ६८ ) " स्वकीय- अज्ञानम् (नपुं०) आत्मतम । ( भक्ति० ३ ) स्वकीय कार्यम् (नपुं०) अपना काम । स्वकीयगृहम् (नपुं०) निजगृह । स्वकीयचेटी (स्त्री०) निजदासी (जयो० १२ / ११० ) स्वकीयदृष्टिः (स्त्री०) आत्मीय दृष्टि, आत्मदर्शन । स्वकीयमञ्चलम् (नपुं०) स्वमुरोऽम्बर (जयो०वृ० १२ / ११४ ) स्वकीयसाधना स्वकीयहितम् (नपुं०) निज कल्याण । ( मुनि० ६ ) स्वकुलः (पुं०) अपना परिवार, आत्मज (जयो०वृ० १ / ३८ ) बन्धुवर्ग (जयो० १२ / ६५) स्वकुलदेवता ( पुं०) अपना कुलदेवता । आत्रिकेष्टहरिहापनोद्यतः साधयेत् स्वकुलदैवताद्यतः। (जयो० २ / ३९) स्वकुलसक्ति (स्त्री०) अपने कुल की मर्यादा। स्वकृत (वि०) अपने द्वारा किए गए (जयो० २/२२) (दयो० ८) स्वनिहित स्वकृतदोष (पुं०) स्वकीय दोष / कष्ट (जयो० १ / ९२ ) स्वधातिस्पर्द्धिकः (पुं०) आत्मघाती गुण (सम्य० ६०) स्वकुले १२२६ सक्तिरस्यास्तीति (जयो०वृ० २/८) स्वकुशल (वि०) अपने आपमें परिपूर्ण, समृद्धशाली । स्वगति (पुं०) निज चेष्टा | (जयो० १४ / २८ ) स्वगनन्दिन् (वि०) आत्मानन्द स्वगमात्मगतं यन्नन्देः प्रसन्नताया (जयो०वृ० ६ / १२७) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वगृहम् (नपुं०) अपना घर (जयो०वृ० १३ / १ ) स्वङग् (अक० ) जाना, पहुंचना । स्वङ्गः (पुं०) आलिंगन । स्वङ्गिन् (वि०) शोधनम यस्या सा स्वङ्गी (जयो० ५ / १०७) सुंदर शरीर वाली। स्वतस् स्वचक्षुस् (नपुं०) अपनी आंख, निज अक्षि (वीरो० ९/३) स्वचेष्टित (वि०) अपनी चेष्टा वाला। (वीरो० १०/१३) स्वच्छ (वि०) साफ, स्पष्ट, सुंदर, निर्दोष (सुद० ) स्वच्छः (पुं०) स्फटिक । स्वच्छं (नपुं०) मोती। ० पुत्र। ० स्वेद, पसीना । स्वच्छत्व (वि०) शुभ्रता (सुद० २/४७) ० सौंदर्य स्वच्छदरः (नपुं०) निर्दोष द्वारा । स्वच्छस्य निर्दोषस्य दरस्य द्वारस्य (जयो०वृ० ११ / ९५) नाभिगर्त निर्दोष समुदाय । o ० निज पत्र (जयो० ११ / ९५) स्वच्छन्द (वि०) स्वातन्त्र्य (जयो०वृ० १३/ ११०) स्वेच्छाचारी । स्वज (वि०) आत्मगत, अपने से उत्पन्न हुआ। स्वजः (पुं०) रक्त-स्वज स्वेदे स्वजं रक्ते 'इति विश्वलोचन: ' (जयो०वृ० ७/९३) स्वजम् (नपुं०) रुधिर । स्वजन (पुं०) आत्मीय लोग, कुटुम्बिजन, बंधु परिजन, पारिवारिक सदस्य, रिश्तेदार । स्वजनानुविधानम् (नपुं०) स्वजनों का मिलन | स्वजनानां पित्रादीनामनुविधानं सम्भालनम् (जयो०वृ० १३ / १ ) स्वजीवनम् (नपुं०) अपना जीवन । स्व (सक०) आलिंगन करना, भींचना, बांहों में लेना, दबोचना । For Private and Personal Use Only ० घेरना, मरोड़ना, आबिद्ध करना । स्वजन: (पुं०) आत्मीय परिजन । (जयो० ५ /१३) स्वट् (अक० ) नाश करना समाप्त करना। स्वतनयः (पुं०) उदरोद्भव पुत्र। (जयो०वृ० २/५२) स्वतस् (अव्य० ) [ स्व + तसिल् ] अपने आप, अचानक, अनायास ही (सुद० १ / ३०) स्वयं यत्र स्वतो वा गुणवृद्धिसिद्धिः (जयो० १/३१) स्वत एव अनायासेनैव (जयो०वृ० १/३१) अनायास । (जयो० २/५८) ० आत्मना। (जयो०वृ० ३/१९ )

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