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सामाजिकता
११७९
साम्प्रतः
सामाजिकता (स्त्री०) संग्रहणता। (जयो० २/१०७) सामानाधिकरण्यम् (नपुं०) [समानाधिकरण+ष्यञ्] एक ही
पदार्थ से सम्बंध रखने वाला। सामानिकः (पुं०) देव समूह का नाम, जो इन्द्र के समान
वैभवादि युक्त होते हैं। सामान्य (वि०) [समानस्य भावः ष्यञ्] ० समान, साधारण।
० सदृश, तुल्य। ० समस्त, सम्पूर्ण, वस्तु की समग्रता। ० समष्टि, समस्त रूप। (जयो० २६/९१) यो वस्तुनां समानपरिणाम: स सामान्यः (जैन० ल० ११५८) सर्वेऽपि प्राणिनोऽस्माभिः सम ज्ञान प्रवृत्तयः। अयं शत्रुरयं बन्धुरित्यज्ञानमयो हि धीः।। (हित०५८)
० गुण और पर्याय से संयुक्त तत्त्व। (वीरो० १९/१९) सामान्यरूपः (पुं०) वस्तु-तत्त्व की अभिव्यक्ति का एक
प्रकार। (हित०सं० १४) सामायिक (वि०) समभावता,
० सावधयोग विरतिमात्र। ० सुख दु:ख में मान्यता। आवश्यक कर्त्तव्य। ० साधु के आवश्यक कर्मों में एक कर्म।
• सामायिक व्रत। (सुद० ४/३३) सामायिककालः (पुं०) सामायिक विधि करने का समय-पूर्वाह्न,
मध्याह्न और अपराह्न। सामायिकक्षेत्र (नपुं०) सामायिक विधि के लिए उपयोगी स्थान। सामायिकचारित्रम् (नपुं०) समताभाव पूर्वक आचरण। सामायिकचिन्तनम् (नपुं०) समभाव का स्मरण। सामायिकचिन्तम् (नपुं०) समभाव का स्मरण
परमात्मा शरीरातिवत्येतीन्द्रिय चिन्मयः। शश्वद्रूपाद्यतीतत्वात्, तुल्योऽह स्वभावतः।।
(हित०सं०६५८) सामायिकप्रतिमा (स्त्री०) कायोत्सर्गपूर्वक आत्मस्वरूप का
स्मरण करना। सामायिकशिक्षाव्रतम् (नपुं०) समस्त प्राणियों पर समताभाव
पूर्वक चिंतन। सामायिकसमयः (पुं०) सामायिक का काल। सामायिकसंयमः (पुं०) सावधयोग से विरत होकर रहना। सामायिकस्थानम् (नपुं०) सामायिक का क्षेत्र। त्रैवर्गिक कार्यक्रम, संकोच्यैकान्तसुस्थले।' स्थित्वा प्रसन्नचित्तेन, कार्यं सामायिक हि तत्।। (हित० ५७)
सामायिकासनम् (नपुं०) सामायिक विधि की आसन।
कायोत्सर्गेण पल्यङ्कासनेनाथ निषीदता।
पूर्वोत्तरदिशास्थेन, सामायिकं तु साध्यताम्।। (हित०५७) सामासिक (वि०) समुच्यात्मक, समास सम्बन्धी। सामि (अव्य०) [साम्+इन्] अपूर्ण, आधा। सामिधेनी (स्त्री०) प्रार्थना मन्त्र। सामीची (स्त्री०) प्रार्थना, स्तुति। सामीप्यम् (नपुं०) [समीप+ष्यञ्] पड़ौस, निकटता, आसन्नता। सामीप्यः (पुं०) पड़ौसी। सामुद्र (वि०) [समुद्र+अण] समुद्र में उत्पन्न। सामुद्रः (पुं०) नाविक, समुद्रयात्री। सामुद्रम् (नपुं०) समुद्री नमक।
शारीरिक चिह्न। सामुद्रकम् (नपुं०) [सामुद्र+कन्] समुद्रीनमक। सामुद्रिक (वि.) [समुद्र+ठञ्] समुद्र से उत्पन्न।
० शारीरिक चिह्न से युक्त।। सामुद्रिकम् (नपुं०) हस्त रेखाओं से फलादेश। साम्पराय (वि०) [सम्पराय+अण] ० सामरिक, युद्ध सम्बन्धी।
० परलोक, लोक सम्बंधी। साम्परायम् (नपुं०) संघर्ष, झगड़ा, कलह।
० भवितव्यता। ० परलोक की प्राप्ति का उपाय। ० पृच्छा, गवेषणा। ० अनिश्चय। ० संसार, सं सम्यक् पर उत्कृष्टः अयो गतिः पर्यटन प्राणिना यत्र भवति स सम्पराय: संसार इत्यर्थः।
(जैन०ल० ११५५) साम्परायिकम् (नपुं०) आत्मा के पराभव को प्राप्त होना।
० संसार का प्रयोजन होना। 'सम्परायः प्रयोजनं यस्य कर्मणः तत् कर्म साम्परायिकं कर्म। ० संसार पर्यटन कर्म, संसार परिभ्रमण कर्म। 'संसार पर्यटन कर्म साम्परायिकमुच्यते' (त०वृत्ति ६/४) (जैन०ल० ११५५) ० कषाय सहित जीव का आस्रव या योग साम्परायिक। ० युद्ध, कलह, संघर्ष।
० आश्रव का एक भेद। साम्प्रतः (वि.) ० योग्य, उचित, उपयुक्त।
० संगत, तर्कयुक्त।
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