Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 358
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवः १२११ स्तेनप्रयोगः स्तवः (पुं०) [स्तु+अप्] स्तुति, स्तोत्र, ० प्रार्थना। (जयो० ९/९) ० स्तुति करना। (सुद० ७३) जय रवे वरवेशतस्तव चरणयो रणयोघनयोः स्तव। (जयो० ३/९) ० प्रशंसा। (जयो० २/१५३) ० यशोगान। स्तवक (वि०) [स्तु+वुन्] प्रशंसक, अभ्यर्चक। स्तवकः (पुं०) ० स्तुति, स्तोत्र, गुणज्ञान। ० गुच्छा, मञ्जरी। (समु० २/१५) ० गुलदस्ता, कुसुमगुच्छ। ० परिच्छेद, पुस्तक का अनुभाग, अंश। ० समुच्चय, समुदाय। स्तवकस्तनी (स्त्री०) उन्नत स्तन वाली स्त्री। (वीरो०६/३२) स्तवनम् (नपुं०) [स्तु ल्युट्] गुणगान, प्रशंसा। ० भक्ति, मंगलपाठाजिनेश्वरस्याभिषवं सुदर्शनः प्रसाध्य पूजां स्तवनं दधानः। (सुद० ११४) ० अतिशय प्रशंसा। (जयो०वृ० १/९१) स्तावः (पुं०) [स्तु+ण्वुल] प्रशंसा, स्तुति, प्रार्थना। स्तावकः (वि०) प्रशंसक, स्तुतिकर्ता। स्ताविक (वि०) स्तुत्य, प्रार्थित। स्ताविकवर्त्मन् (नपुं०) स्तुत्यसत्यमार्ग। (भक्ति०१) स्तिघू (अक०) चढ़ना, धावा बोलना। रिसना, टपकना। स्तिप् (अक०) टपकना, रिसना, झरना। स्तिभिः (स्त्री०) [स्तम्भ+इन्] ० अवरोध, रुकावट। गुच्छा, गुल्म, पुंज। स्तिम् (अक०) गीला होना, स्थिर होना। स्तिमितु (वि०) गीला, तर, निश्चल, निश्चेष्ट, शांत। स्तिर् (अक०) झुकना, नमना। (सुद० २/२१) स्तीविः (पुं०) इन्दु। स्तु (अक०) प्रशंसा करना, प्रार्थना करना, गुणगान करना, ___भजन करना। (सुद० ७३, जयो० १/८२) स्तुकः (पुं०) ग्रंथि, चोटी। स्तुका (स्त्री०) [स्तुक+टाप्] ० कूल्हा, जंघा। ० बालों का चोटी। स्तुच् (अक०) उज्ज्वल होना, शुभ्र होना, चमकना। स्तुत (भू०क०कृ०) [स्तु+क्त] समर्थित। (जयो० ५/५६) प्रशंसा किया गया, प्रशस्त। (जयोवृ० १/५०) स्तुतवान् (वि०) प्रशंसावान (सुद० ३/९) स्तुताञ्जन (वि०) आराधना करने योग्य। (सुद० १३५) | स्तुतिः (स्त्री०) [स्तु+क्तिन्] प्रशंसा, कीर्तन, स्तव, पुण्यगुणोत्कीर्ति, गुणगान। ० श्लाघा, सराहना। स्तुतिकर्ता (वि०) प्रशंसक। स्तुतिगीतम् (नपुं०) सूक्त, सुभाषित गान, यशोगान। स्तुतिपदम् (नपुं०) प्रार्थना पद। स्तुतिपाठः (पुं०) स्तोत्र। स्तुतिपाठकः (पुं०) यशोगान कर्ता, कीर्तिगायक, मागध। (जयो०वृ० १/६५) प्रशस्ति प्रस्तोता। ० चारण, भाट, बन्दीजन। (जयो०७० ६/१३२) स्तुत्य (वि०) [स्तु+क्यप्] प्रशंसनीय, श्लाध्य। (जयो० ११/९७) स्तुत्यसत्यमार्गः (पुं०) प्रशंसनीय पथा (भक्ति० १) स्तुनकः (पुं०) [स्तु+नकक्] बकरा, अज। स्तुभ् (अक०) प्रशंसा करना, गान करना, प्रार्थना करना। ० रोकना, दबाना। स्तुभः (पुं०) बकरा। [स्तुभृ+क] स्तुम्भ (सक०) निकाल देना, बाहर करना। स्तूप् (अक०) संचित करना, ढेर लगाना, एकत्र करना, खड़ा करना, उठाना। स्तूपः (पुं०) [स्तूप्+अच्] ढेर, टीला। ० स्मारक। (दयो० ६५) स्तूपाकार (वि०) स्तूपित, स्मारक रूप। (वीरो० २/१८) स्तूपित (वि०) स्मारक। स्तु (सक०) फैलाना, छितराना, बिछाना, प्रसार करना, विकीर्ण करना। ० लपेटना, ढांपना। ० प्रसन्न करना, तृप्त करना। स्तु (पुं०) [स्तृ+क्विप्] तारा। स्तुतिः (स्त्री०) [स्तृ+क्तिन्] ० फैलाना, बिछाना, प्रसार करना। ___० ढकना, वस्त्र धारण करना। स्तेन् (सक०) चुराना, अपहरण करना, छीनना, लूटना। स्तेनः (पुं०) [स्तेन् कर्तरि अच्] चोर, लूटेरा। (दयो० २/६) स्तेनम् (नपुं०) चोरी करना, चुराना। स्तेनकृत (वि०) चुराई गई। (वीरो० ६/३७) स्तेनप्रयोगः (पुं०) चोरी की ओर उद्यत होना, चोरी की अनुमोदना करना, चोर प्रेरणा। (भक्ति० ४०) ० अचौर्याणुव्रत का एक अतिचार। For Private and Personal Use Only

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