Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 357
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra स्तनपः www.kobatirth.org स्तनप: (पुं०) शिश, दुहमुहा | (जयो० १७ / १५ ) स्तनपान करने वाला शिशु । स्तनपायक (वि०) दूध पीने वाला शिशु । स्तनपायि (वि०) स्तन से दूध पीने वाला। स्तनप्रदेश: (पुं०) पयोधर, थन। (जयो० ११ / ९३) ० बादल (जयो० ११/३३) स्तनफल: (पुं०) उन्नत कुच (जयो० ११ / ९५) स्तनभवः (पुं०) रतिबन्ध की प्रक्रिया, स्तन आलिंगन भाव। स्तनमुखम् (नपुं०) चुचूक, कुच का श्याममुख, स्तन भाग स्तनशिला (स्त्री०) चुचूक का अग्रभाग। स्तनशैल (पुं०) उन्नत पयोधर (सुद० १/१३) समुन्नत कुच । स्तनसंदेश (पुं०) कुच निर्देश, पयोधर युग्म । (जयो० ३/४९) स्तनस्पर्धित (वि०) कुचाभोग। (जयो०वृ० ११/३७) छन्ना किलोच्चैः स्तनशैलमूले (जयो० ११ / ४९) अतिशयोन्नतश्चासौ शैलः । स्तनस्तवकः (पुं०) कुचगुच्छ (जयो० १७/११३) स्तनहैमकुम्भ: (पुं०) पयोधर रूपी स्वर्ण कलश | (जयो० ११ / ६८) स्तनाङ्कः (पुं०) पयोधरा। (जयो०वृ० १२ / १२६ ) स्तनाननम् (नपुं०) स्तन का मुख, कुच कुड्मल भाग । (सुद० २/४४) स्तनाभोगवश (पुं०) पयोधर के कारण (जयो० ११/३४) स्तनित (भू०क० कृ० ) [ स्तन् कर्तरि क्त] ध्वनित, शब्दायमान स्तनितकुमारः (पुं०) एक देव नाम। स्तनितम् (नपुं०) मेघगर्जन, बिजली की गरज (जयो० ) स्तन्धयः (पुं०) अबोध बालक, शिशु (हित ) स्तन्यम् (नपुं०) मां का दूध । स्तन्यत्यागः (पुं०) मां का दूध छुड़ाना। स्तबक: (पुं०) [स्तु+बुन् ] गुच्छा, झुण्ड । ( ( सुद० ८२ ) (जयो० १७/११३) (दयो० ५५) १२१० स्तबकगुच्छम् (नपुं०) एक नगर का नाम महाकच्छ के समीप का एक नगर सम्पातः समभूत्तयो स्तबकगुच्छोपकण्ठ स्थले । (समु०२/२८) स्तबकोत्तरम् (नपुं०) स्तबक गुच्छ नगर का एक नाम। (समु० २ / १५ ) स्तब्ध (भू०क०कु० ) [ स्तम्भ् कर्तणि कर्तरि वा क्त] ० अवरुद्ध, रोका हुआ। ० सुन्न, जड़ीकृत। ० गतिहीन, अचल । स्तरी स्तब्धता / स्तब्धत्व (वि० ) [ स्तब्ध + तत्+टाप् त्वा वा] जाड्य, असंवेद्यता । ० दृढ़ता, कठोरता । स्तब्ध (स्त्री० ) [ स्तम्भू क्तिन्] स्थिरता, दृढ़ता। ० जड़ता, धृष्टता। स्तम्बः (पुं०) [स्था अम्बच्] ० झुण्ड, गुच्छक, पुंज। ० गुल्म। О पूली, गट्ठर। स्तम्बकरि (वि०) अनाज की पूली बनाने वाली । स्तम्बधन: (पुं०) खुरपा, घास खोदने का उपकरण। स्तम्बघ्नः (पुं०) दरांती, खुर्पा स्तम्भू (सक०) रोकना, पकड़ना, जकड़ना, बांधना। ० टेक लगाना, सहारा लेना। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तम्भ: (पुं० ) [ स्तम्भ + अच्] ० रोक, अवरोध, रुकावट । ० नियंत्रण, दमन, वशीकरण (जयो० १६/८३) ० खंभा, स्थूण । (सुद० २/१४) ० मूढ़ता, जड़ता । • जंघा (जयो० ३ /७२) ० टेक, सहारा, आलम्बन, आश्रय । स्तम्भकरिन् (वि०) वश में करने वाली (जयो० १२/११) खग्रहसुदृशः शयोपचिद्या द्विषते स्तम्भकरीव भाति विद्या (जयो० ) स्तम्भकिन् (पुं०) वाद्य विशेष । स्तम्भनम् (नपुं० ) [ स्तम्भ + ल्युट् ] दमन, वशीकरण, नियंत्रण । (जयो० १५/८३) ० शांत होना, दृढ़ करना। स्तम्भनकारणम् (नपुं०) नियंत्रण हेतु । (जयो० ११ / ३४ ) स्तम्भनकारिणी (स्त्री०) वशीकरण विद्या (जयो० १२ / ११) स्तम्भनविद्या (स्त्री०) वशीकरण विद्या (जयो० १६/८३) स्तम्भनार्थ (वि०) वश में करने के लिए। (दयो० ६५) स्तर (वि०) (स्तु+घञ्) फैलाने वाला, विस्तार करने वाला, ढकने वाला। स्तर (पुं०) तह, परत । ० शय्या बिछावन। स्तरणम् (नपुं०) [स्तु + ल्युट्] छितराना, बिछाना, फैलाना। स्तरि/स्तरी (स्त्री०) शय्या, बिछावन, पलंग । स्तरी (स्त्री०) बाष्प, धूम ० बछिया, ० बांझ गाय । For Private and Personal Use Only

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