Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 348
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूर्यकान्त १२०१ सृतिः ० शनिपित। ० हिमनाशक। (जयो० २४/३४) (जयो० ५/३६) ० गभस्ति। (जयो०वृ० १/३३) ० अब्जय। (वीरो० २/११) ० शीर। (वीरो० २/२२) ० सवित्। (जयो० वृ० ८/८९) ० दिनकर। (जयो० १/१९) ० छ। (जयोवृ० २८/१) ० तपोधन। (जयोवृ० २८/३) ० दिनकान्तमणि (जयोवृ० १८/१८) ० सविभाव। (जयो०वृ० १३/१३) ० अर्यमा। (भक्ति० २५) ० तपन, तेजस्विन्। (जयो०वृ० ३/१०२) ० महस्कर। (दयो० १८) ० तरणि। (जयो०वृ० ५/२८) ० भास्वान्। (जयो० १७/२) ० दिन श्री, सप्ताश्वक। (जयो० १५/१६) ० अब्जनेतृ (जयो० १५/४) सूर्यकान्त (पुं०) एक तेजस्वी मणि। सर्यकिरणम् (नपुं०) सर्यरश्मि। (भक्ति० २१) सूर्यग्रहः (पुं०) सूर्य ग्रहण। ० राहु। सूर्यग्रहणम् (नपुं०) सूर्यग्रहण। सूर्यजः (पुं०) ० सुग्रीव, यम। ० शनिग्रह। सूर्यजा (स्त्री०) यमुना नदी। सूर्यतनयः (पुं०) कर्ण, ० सुग्रीव। सूर्यतेजस् (पुं०) गर्मी, ऊष्मा, तपन। सूर्यनक्षत्रम् (नपुं०) सूर्य नक्षत्र। सूर्यपर्वन् (नपुं०) पुण्यकाल। सूर्यप्रसव (वि०) सूर्य से उत्पन्न। सूर्यभक्त (वि०) सूर्य का उपासक। सूर्यमणिः (स्त्री०) सूर्य कान्तमणि। सूर्यमण्डलम् (नपुं०) सूर्य परिवेश। सूर्यमुखीपुष्पम् (नपुं०) बन्धुनिबन्ध। (जयो०वृ० ६/५८) सूर्ययन्त्रम् (नपुं०) सूर्य उपासक यन्त्र। सूर्यरश्मिः (स्त्री०) दिनकर प्रभा। (भक्ति० २१) सूर्यलोकः (पुं०) सूर्यलोक। सूर्यवंशः (पुं०) इक्ष्वाकुवंश। सूर्यवंशीय (वि०) सूर्यवंश वाले। (वीरो० १५/२७) सूर्यवर्चस् (वि०) सूर्य की तेजस्विता। सूर्यसारथी (पुं०) अरुण। (जयो०वृ० १२।८२) सूर्या (पुं०) सूर्य की पत्नी। सूर्यातिशायी (वि०) सूर्य का महा प्रकाश। (वीरो० ५/१) सूर्याय॑म् (नपुं०) सूर्यपूजा। सूर्यावर्तः (पुं०) भास्करपुर का राजा। (समु० ३/२२) सूर्याश्मन् (पुं०) सूर्यकान्तमणि। सूर्यास्तम् (नपुं०) सूर्य का छिपना। (मुनि० १२) सूर्योत्थानम् (नपुं०) सूर्योदय। सूर्योदयः (पुं०) सूर्य का उदय होना, अर्कचार। (सम्य० १/११) (जयो०वृ० १८/२), ० तिग्मकरोदय। (जयो०वृ० २०/८९) ० अधिपोदय। (जयो० १९/१) सूर्योदययुता (स्त्री०) पूर्व दिशा। (जयो०वृ० १७/११९) सूष् (सक०) फल उत्पन्न करना, उत्पन्न करना, जन्म देना। सूष (अक०) रहना, निवास करना। 'सर्वेमनुष्यैरिह सूषितव्यमितीव' (वीरो० १३/८) सूषणा (स्त्री०) [सूष्+युच्+टाप्] माता। सूष्यती (स्त्री०) प्रसवोन्मुखी, आसन्न प्रसवा। सृ (अक०) जाना, पहुंचना, दौड़ना, चलना। सृकः (पुं०) [सृ+कक्] पवन, वायु, हवा। . बाण, ० वज्र, ० कमल। ० रक्त। (हि० ४३) सकसमितः (वि०) रक्तरंजित। (जयो० ८/३६) सृकण्डु (स्त्री०) खुजली। सृकालः (पुं०) [सृ+कालन्] शृगाल। सृक्कन् (नपुं०) मुख का किनारा। सृगः (पुं०) [सृ+गक्] ० भिंदिपाल, तेज बाण। सृगालः (पुं०) शृगाल। सृङ्का (स्त्री०) मणियों का हार। सृज् (सक०) रचना, बनाना, तैयार करना। ० प्रसव करना, जन्म देना। ० उगलना, निकालना। ० फेंकना, छोड़ना। सृजिकाक्षारः (पुं०) शोरा, देह, सञ्जीसार। सृणिका (स्त्री०) [सृणि+कन्] लार। ० थूक। सृणिप्रकार (पुं०) अंकुश। (समु० ३/१९) सृतिः (स्त्री०) [स+क्तिन्] सरकना। ० संचालन। (जयो० २/५८) ० पथ, मार्ग, रास्ता। For Private and Personal Use Only

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