Book Title: Bhav Sangrah
Author(s): Devsen Acharya, Lalaram Shastri
Publisher: Hiralal Maneklal Gandhi Solapur

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Page 15
________________ टीकाकार का परिचय विशेषता यह है कि मुलग्रंथ के अनुसार ही आशय रहता है । ग्रंथ के वाहर की कोई भी बात स्वतन्त्र रूप से लिखी हुई आपकी टीकाओं मे प्रक्षिप्त नहीं की जाती है । आपके द्वारा टीका किये हुए बहुत से ग्रंथ हैं जिनमे कुछ के नाम इस प्रकार है-आदि पुराण, उत्तरपुराण, शान्तिपुराण, धर्मामृत श्रावकाचार, सुबोधसार, चारित्रसार, आचारसार,, बोधा मृतसार, ज्ञानामृतसार, सुधर्मोपधर्मदेशामृतसार, प्रश्नोत्तर, श्रावकाचार, समन्तभद्र कृत जिनशतक, पात्र केशरी स्तोत्र संशयि वदन विदारण, गौतम चरित्र, सुभौम चरित्र, सूक्ता भुक्तावला, तत्वानुशासन, बैराग्य मुनिमाला, द्वादशानुप्रेक्षा, ( वशस्तिलक चम्पू स्थित ), बृहत्स्वयंभूस्तोत्र, लघीयस्त्र, चतुर्विंशतितीर्थकर महास्तुती, चतुर्विंशतितीर्थकर स्तोत्र, सुधर्मध्यान प्रदीप, सुधर्म श्राबक्काचार, शान्ति सिंधु, मुनित्रमं प्रदीप, दशभक्त्यादि संग्रह, मोक्षशास्त्र, भावसंग्रह, आशाधर सहस्र नाम, जिनसेन सहस्रनाम मूलाचार प्रदीप, सार समुच्चय, आलाप पद्धति, दशलाक्षणिक जयमाला आदि । इनके सिवा षोडश संस्कार, क्रियामंजरो, बालबोध जैनधर्म तीसरा चौथा भाग, जनधर्म, जनदर्शन, आदि कितनी ही स्वतन्त्र पुस्तके श्रद्धेय धर्मरत्नजी ने लिखी है । आचार्य शान्तिमागर पूजन, आचार्य शान्तिसागर छाणी पूजन, आचार्य कुंथुसागर पूजन, श्री सम्मेद शिखर पूजन, श्री अकंपन संघ, पूज्य विष्ण कुमार मुनि पूजन, भक्तासार शतद्वयी, नमस्कारात्मक सहस्रनाम शान्त्यष्टक, आदि संस्कृत पद्य रचनात्मक स्वतन्त्र ग्रंथों की रचना मी आपने बहुत सुन्दर और प्रासाद गुणयुक्त की है। आपने आदि पुराण समीक्षा की परीक्षा लिखी थी उसका प्रभाव भी जैन समाज में बहुत अधिक पड़ा था आपने इन ग्रंथों को लिखकर तथा अनेक ग्रंथों की सग्ल टीकाएं लिखकर समाज को जो लाभ पहुंचाया है तथा हिन्दी और संस्कृत साहित्य की जो उन्नति की है उसके लिये समाज आपका सदैव ऋणी रहेगा ।

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