Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 14
________________ 20 भद्रबाहुसंहिता देता है। उदर में तिल होने मे व्यक्ति दीर्घसूत्री और स्वार्थी होता है । नासिका के वामपाल में तिल रहने से पुरुष धनहीन, मद्यपायी और मर्च होता है। बायीं ओर के कपो र तिल हो तो अट दाम्पत्य प्रेम होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। कान में तिल होने से भाग्य और यश को बृद्धि होती है। नितम्ब में तिल होने से अधिक सन्तान प्राप्त होती है, किन्तु सभी जीवित नहीं रहतीं । दाहिनी आपका तिल धनी होने का सूचक है । वायीं जाँघ का तिल दरिद्र और रोगी होने की सूचना देता है। दाहिने पैर में तिल होने से व्यक्ति ज्ञानी होता है, आधी अवस्था के पश्चात् संन्यासी का जीवन व्यतीत करता है। दाहिनी बाहु में तिल होने से दढ़ शरीर, धैर्यशाली एवं बायीं बाह में तिल होने से व्यक्ति कठोर प्रकृति, बोधी और विश्वासघातक होता है। इस प्रकार के तिल वाले व्यक्ति प्रायः डाकू या हत्यारे होते हैं। __ यदि नारियों के वाय कान, बायें कपोल, बायें कण्ठ अथवा बायें हाथ में तिल हो तो वे प्रथम प्राव में पुत्र प्रसव करती हैं। दाहिनी भौंह में तिल रहने से गुणवान् पति-ताभ करती हैं। बायौं छाती के स्तन के नीचे तिला रहने से बुद्धिमती, प्रेमवती और सुखप्रस विनी होती हैं । हृदय में तिल होने से नारी सौभाग्यवती होती है । दक्षिण स्तन में लोहितवणं का तिल हो तो चार कन्याएं और तीन पुत्र उत्पन्न होते है । बायें स्तन में तिल या लाल कोई चिह्न हो तो वह स्त्री एक पुत्र प्रसव कर विधवा हो जाती है । बगल में सुदीर्ष तिल होने से नारी पतिप्रिया और पौत्रवती होती है । नख में श्वेत विन्दु हो, तो उसके स्वेच्छाचारिणी तथा बुलटा होने की संभावना है । जिस स्त्री की नाक की नोक पर तिल या मस्सा हो; दन्त और जिह्वा बाली हो तो वह स्त्री विवाह के दश दिन बिधबा होती है। दक्षिण घुटन पर तिल होने से मनोहर पति-लाभ होता है। दाहिनी वाहु में हो तो पति को सौभाग्यदायिनी तथा पीठ में तिल होने से लक्षण और पतिपरायण होती है । वायी भुजा में तिल या मस्सा होने से स्त्री मुखरा, कालहकारिणी और कटुभाषिणी होती है । बायें कंधे पर तिल रहने से चंचला, व्यभिचारिणी और असत्यभाषिणी होती है। नाभि के बायें भाग में तिला रहने से चंचला और नाभि का दाहिने भाग में तिल होने से सुलक्षणा होती है। मस्सों और चट्टोंलहसुनो का शुभाशुभ फल भी तिलो के सामान ही समझना चाहिए। निमित्त शास्त्र में व्यंजना का विचार विस्तारपूर्वक किया है। अंगनिमित्तज्ञान-हाथ, पाँव, ललाट, मस्तक और वक्षःस्थल आदि शरीर के अंगों को देखकर शुभाशुभ फल का निरूपण करन] अंगनिमित्त है। नासिका, नत्र, दन्त, ललाट, मस्तक और वक्षःस्थल ये छ: अवयव उन्नत होने से मनुष्य सुलक्षण युक्त होता है । करतल, पदतल, नयनप्रान्त, नख, तालु, अधर और जिह्वा ये सात अग लाल हों तो शुभप्रद है । जिसकी कमर विगाल हो, वह बहुत पुत्रवान्

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