Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 24
________________ ६ भद्रबाहु चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक दुष्काल में विशाखाचार्य तो दक्षिण दिशा की ओर चले गये किन्तु आचार्य भद्रबाहु के अन्य साथी आचार्य रमिल्ल, स्थविरयोगी एवं स्थूलभद्राचार्य ने सिन्धुदेश की ओर विहार किया । सिन्धुदेश भी दुर्भिक्ष की चपेट में था, फिर भी वहाँ के श्रावकों ने साधुसंघ की चर्या की उत्तम व्यवस्था की । किन्तु कालदोष से वे शिथिलाचारी हो गये । फलस्वरूप उनमें संघभेद हो गया। आगे चलकर उनके साधुसंघ अर्धंफालक - सम्प्रदाय एवं यापन संघक - सम्प्रदाय के नामसे प्रसिद्ध हुए। हरिषेण के अनुसार भद्रबाहु चरित इसी घटना के बाद समाप्त हो जाता है । [ ३ ] भद्रबाहु चरित के तीसरे लेखक रामचन्द्र मुमुक्षु ( १२वीं सदी के आसपास ) हैं, जिनके “पुण्याश्रवकथा कोष" के उपवासफलप्रकरण में भद्रबाहुचरित वर्णित है । तदनुसार मगध में द्वादशवर्षीय दुष्कालके कारण आचार्य भद्रबाहु १२००० साधुओं के साथ दक्षिण भारत की ओर चले गये । इसके पूर्व इस कथानक में सम्राट चन्द्रगुप्त द्वारा १६ स्वप्न-दर्शन एवं आचार्य भद्रबाहु द्वारा उनके उत्तर दिये जाने की चर्चा है, जो बृहत्कथाकोष में उपलब्ध नहीं है । दक्षिण की एक गुफा में आकाशवाणी से अपनी अल्पायु सुनकर उन्होंने विशाखाचार्य को ससंघ चोलदेश भेज दिया और स्वयं अपने शिष्य चन्द्रगुप्त के साथ उसी गुफा में आत्मस्थ होकर रहने लगे । उनके आदेश से मुनिराज चन्द्रगुप्त ने वहाँ कान्तार- चर्या की । दुष्काल की समाप्ति के बाद विशाखाचार्य चोलदेश से लौटते समय मुनि चन्द्रगुप्त के पास आते हैं और उनके साथ मगध लोटते हैं । उसके बाद का कथानक कुछ विस्तार के साथ प्रायः बृहत्कथाकोष के समान ही है । ( मूलकथानक के लिए इसी ग्रन्थ की परिशिष्ट देखें ) । २ [४] ११-१२वीं सदी के कवि श्रीचन्द्रकृत अपभ्रंश कहकोसु (कथाकोष ) में भद्रबाहु का वही कथानक है, जो उक्त बृहत्कथाकोष का । अन्तर इतना ही है कि इसमें स्थूलिभद्र का अपरनाम समन्तभद्र, चन्द्रगुप्त का अपरनाम लघु भद्रबाहु अथवा लघु मुनि उल्लिखित है । बृहत्कथाकोष में मायानगर की चर्चा तथा वहाँ गुरु भद्रबाहु के आदेश से चन्द्रगुप्त द्वारा आहार ग्रहण का प्रसंग नहीं है, जब कि उक्त कहकोसु में है और यह प्रसंग पुण्याश्रवकथाकोष के कान्तार-चर्या के प्रसंग के समान है । १. जीवराजग्रन्थमाला शोलापुर ( १९६४ ई. ) से प्रकाशित । २. प्राकृत टैक्स्ट सोसाइटी अहमदाबाद ( १९६६ ई. ) से प्रकाशित | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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