Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
[१०] Sixteen dreams of Candragupta, the son of Nakula
and grandson of king Aśoka.
मुाणणा
णामें चंदगुत्ति तहु णंदणु संजायउ सज्जणु आणंदणु । पोढत्तणु सो रज्जि परिट्ठिउ णिव-पउ पालणि सो उक्कंठिउ । जिणधम्मै मइ तित्तउ अच्छइ मुणिणाहहँ णिरु दाणु पडिच्छइ ।
अण्णहिँ दिणि वि रइणि सुपसुत्तइँ सिविणइँ दिइँ सोलहमत्त । 5 दिट्ठउ अच्छंगउ-दिवसेसरु साहाभंगु कप्परुक्खहु परु ।
इंदविमाणु वि वाहुडि जंतर अहिबारहफणि फुफ्फूवंतउ । ससिमंडलहु भेउ तहु दिटुउ हत्थि किण्ह जुज्झत अणि?उ । खज्जोउ वि दिट्ठउ पहवंतउ मज्झि सुक्कु सरवरु वि महंतउ ।
धूमहु पूरै गयणु विछिण्णउ वणयरगणु विट्ठरहिँ णिसण्णउ । 10 कणय-थालि पायस मुंजता साणु णियच्छिय तेय-फुरंता।
करिवर-खंधारूढा वाणर दिट्ठ कियारमज्झि कमलइँ वर । मज्जायं चत्तहु पुणु सायरु बाल-वसह धुर जोत्तिय रहवरु । तरुण-वसह आरूढा खत्तिय दिट्ठा तेण अतुलबल सत्तिय ।
घत्ता
इय सिविणय पिच्छिवि गोसि णिरु जामच्छइ चिंताउरु । तातम्मि णयरि संपत्तु वणि भद्दबाहु रिसि परमगुरु ॥१०॥
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