Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
के बाद इन्द्र का पुत्र कल्कि उत्पन्न हुआ। उसका नाम चतुर्मुख था। उसकी आयु ७० वर्ष की थी। उसने ४२ वर्षों तक राज्य किया। उसे नरपति का पट्ट वीर निर्वाण संवत् ९५८ में बांधा गया।
भारतीय इतिहास की दृष्टि से ४३२ ईस्वी में लड़ाकू हूणों ने गुप्त साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया। यद्यपि स्कन्दगुप्त ने उन्हें पराजित किया, फिर भी वे (हूण ) अपनी शक्ति बढ़ाते रहे और ५०० ई० के आसपास उनके सरदार तोरमाण ने गुप्तों को हराकर पंजाब और मालवा पर अधिकार कर लिया। ५०७ ईस्वी में उसके पुत्र मिहिरकुल ने भानुगुप्त को पराजित कर गुप्तवंश को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके अत्याचारों से पीड़ित होकर एक हिन्दू-सरदारविष्णुधर्म ने सैन्य-संगठन कर ५२८ ईस्वी में मिहिरकुल को परास्त कर राज्य से निकाल बाहर किया। सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. सतीशचन्द्र विद्याभूषण के अनुसार विष्णुयशोधर्म कट्टर वैष्णव था। उसने वैदिक-धर्म का उपकार तो किया किन्तु जैन-साधुओं एवं जैन-मन्दिरों पर उसने बड़ा अत्याचार किया। अतः जैनियों में वह कल्कि के नाम से प्रसिद्ध हुआ जबकि हिन्दू-सम्प्रदाय का उसे अन्तिम अवतार माना गया।
उक्त सभी तथ्यों के आधार पर एक सामान्य तुलनात्मक मानचित्र निम्न प्रकार तैयार किया जा सकता है
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