Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 152
________________ १०२ भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक "प्रियदर्शी' जैसी सुन्दर उपाधियों से विभूषित किया है। श्रमण संस्कृति एवं धर्म के प्रचार में उसका योगदान विस्मृत नहीं किया जा सकता। इतिहासकारों की कालगणना के अनुसार उसका समय ई. पू. २७२ से २३२ तक का माना गया है । जैन-साहित्य में अशोक के विषय में अधिक सामग्री उपलब्ध नहीं है । ९।१२. णउल ( -नकुल)-सम्राट अशोक का पुत्र । बौद्ध-साहित्य में यह कुणाल के नाम से प्रसिद्ध है। नकुल अन्धा कर दिया गया था। जैन मान्यतानुसार नकुल की इच्छा से अशोक ने उसके पुत्र सम्प्रति (चन्द्रगुप्त द्वितीय ) को मगध का राजा बनाया था। इसका समय पू. ई. ३५ के बाद माना गया है। १०।१. चंदगुत्ति (-चन्द्रगुप्त )-मौर्यवंशी राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय । महाकवि रइधू ने मौर्यवंश की कुल-परम्परा प्रस्तुत की है, जो इस प्रकार है : १. मौर्यवंशी चन्द्रगुप्त (प्रथम ) २. बिन्दुसार ३. अशोक ४. नकुल ५. चन्द्रगुप्त (द्वितीय) → कवि रामचन्द्र मुमुक्षा के अनुसार इसने राजगद्दी पर बैठने के बाद १६ स्वप्न देखे थे। इसका समय जैन कालगणना के अनुसार ई. पू. ३५ वर्ष सिद्ध होता है । इसके स्वप्नों के फल का कथन भद्रबाहु द्वितीय ने किया होगा, क्योंकि उनका समय भी ई. पू. ३५ ही है। ये भद्रबाहु श्रुतकेवली नहीं, श्रुतावतार के अनुसार अष्टांगधारी अवश्य थे। ___ श्री रामचन्द्र मुमुक्षु ( १२वीं सदी के आसपास ) कृत "पुण्याश्रवकथाकोष" के अनुसार अशोक के पौत्र (कुणाल-पुत्र ) का नाम सम्प्रति-चन्द्रगुप्त था। इस कोषग्रन्थ के अनुसार रात्रि के अन्तिम प्रहर में उसके द्वारा देखे गये १६ स्वप्नों का फल-कथन आचार्य भद्रबाहु ( प्रथम ) ने किया था। परवर्ती कुछ लेखकों के साथ कवि रइधू ने भी इस परम्परा का अनुकरण किया है, जो भ्रमात्मक है । क्योंकि सम्प्रति-चन्द्रगुप्त एवं भद्रबाहु (प्रथम) में लगभग ३३० वर्षों का अन्तर है। उक्त स्वप्न-परम्परा का कथन सर्वप्रथम रामचन्द्र मुमुक्षु ने किया है, इससे पूर्व के साहित्य में वह परम्परा नहीं मिलती। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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