Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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टिप्पणियाँ
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१३२७. दोदहवरिसहुकालु ( - द्वादशवर्षीय दुष्काल ) - जैन-स्रोतों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ( प्रथम ) के समय में मगध में तथा कुछ ग्रन्थकारों के अनुसार मालवा एवं सिन्ध में १२ वर्षों का भयानक अकाल पड़ा था । इस कारण आचार्य भद्रबाहु के नेतृत्व में १२००० श्रमण - साधु दक्षिण भारत की ओर चले गये थे । स्थूलभद्र, रामिल्ल एवं स्थूलाचार्य पाटलिपुर में ही रह गये थे । कालदोष से उसी समय जैन संघ विभक्त हो गया । जैन सन्दर्भों के अनुसार यह दुष्काल सम्भवतः ई. पू. ३६३ से ई. पू. ३५१ के मध्य पड़ा होगा ।
१३।९. दक्खिण - दिसि ( - दक्षिण दिशा ) - दक्षिण भारत, जिसमें कर्नाटक, पाण्ड्य, चेर एवं चोल देश प्रमुख माने जाते थे ।
१३।१५, थूलभद्द, रामिल्ल एवं थूलायरिय ( - स्थूलभद्र, रामिल्ल एवं स्थूलाचार्य ) – आचार्य भद्रबाहु ( प्रथम ) की परम्परा के पाटलिपुत्र के प्रधान जैनाचार्य । द्वादशवर्षीय अकाल के समय इनके निवासस्थल के विषय में प्राचीन लेखकों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किये हैं । आचार्य हरिषेण ( १० वीं सदी ) के अनुसार वे सिन्धदेश चले गये, जब कि रामचन्द्र मुमुक्षु एवं कवि रइधू के अनुसार वे पाटलिपुत्र में रहते रहे और भट्टारक रत्ननन्दि के अनुसार वे उज्जयिनी में रहे । किन्तु अधिकांश सन्दर्भों के आधार पर उक्त तीनों आचार्यों का पाटलिपुत्र में रहना अधिक तर्कसंगत लगता है । अर्धमागधी आगम - साहित्य के अनुसार स्थूलिभद्र उस समय पाटलिपुत्र में थे । अर्धमागधी आगम - साहित्य के आधार पर ये स्थूलभद्र राजा नन्द के मन्त्री - शकट या शकटाल के पुत्र थे ।
१३० १५. अडवी ( — अटवी ) - भयानक जंगल । कोषकारों के अनुसार अटवी उस वन का नाम है, जहाँ सघन वृक्षों, झाड़ियों एवं विषम वन्य प्राणियों के कारण मनुष्यों का प्रवेश अत्यन्त कठिन होता है ।
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१४ १२ कंतारभिक्ख ( कान्तारभिक्षा ) -- आचार्य भद्रबाहु ने जब अपने परम - शिष्य – मुनि चन्द्रगुप्त को निर्जल उपवासों की दीर्घ श्रृंखला में जकड़ा हुआ देखा तो उसे कान्तार- भिक्षा अथवा कान्तार-चर्या की आज्ञा प्रदान की । मेरी दृष्टि से आचार्य भद्रबाहु के इस प्रकार के आदेश में दो दृष्टिकोण थे । प्रथम तो यह कि उससे चन्द्रगुप्त के आचरण की परीक्षा हो जाती कि भूखप्यास के दिनों में अपनी इन्द्रियों एवं मन पर वह पूर्ण विजय प्राप्त कर सका था या नहीं ? अथवा, उसके शिथिलाचारी होने की कोई सम्भावना तो नहीं है ? दूसरा यह कि यदि उसने यथार्थ तपस्या की है, तो उसके प्रभाव से उसे घने जंगल में भी निर्दोष आहार मिल सकता है अथवा नहीं । कान्तार - भिक्षा के विषय में मुझे अन्यत्र कोई भी सन्दर्भ सामग्री देखने को नहीं मिल सकी ।
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