Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 134
________________ भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक काई = किम्, क्या ८१ कोस = कोष, खजाना ५।९; ५।१२ कारणि = कारण २०१२ कोहधरु =क्रोध धारण करनेवाला, कारहरि = कारागृह में ६९ क्रोधी ७।९ कालचक्कु = कालचक्र (अवसर्पिणी, कंकण = आभूषण १५३१ उत्सर्पिणी) २८१ कंकाल = कंकाल, अस्थिपंजर १७१ कालपवट्टण = कालप्रवर्तन १८०३ कंतइखंडिय = कान्त बिछड़ गया १७।५ कालपवेसि = काल-प्रवेश २७।२ कंतारभिक्ख = कान्तारभिक्षा १४।१२ कालरूउ = यमराज के समान कंद =कन्द २७।३ रूपवाला १८०५ कंबलधर=कम्बलधारी २२।८ कालि = समय २६।२ किउ = किया, रखा १३१८ खउ = क्षय २६।११ किण्ह = कृष्ण, काला खज्जोउ =खद्योत(जुगनू)१०८,१२।१ किण्णिय = क्लिन्न, क्षीण, काले खण =क्षण ११११,५।५।१७।३।२४।२ वर्णवाले २०१२ खणिवि =खोदकर ८।३ कित्तियवासर=कितने ही दिन १७।१५ खणु = २०१० किंपिकोई भी, कुछ भी ५।६ खणंतु = खोदते हुए ७।९ किव्वउ =करो, करना, कीजिए ९।१५ खत्तिय = क्षत्रिय १०११३ कुक्कुड =कुक्कुर, कुत्ता १२।६ खमावणु =क्षमापन १४५ कुडंब =कुटुम्ब, परिवार ५।१३ खमाविवि =क्षमा कराकर ४।८ कुधम्म = कुधर्म १२।१२ खमिवि=क्षमा कर ४१८ कुल =कुल, परिवार १२.५ खययरु= २७१७ कुलक्कमि = कुलक्रम २७।१७ खलिणो स्खलित, खाली ५।१२ कुलक्खउ =कुल-क्षय ५।१६ खसिउ=स्खलित १८७ कुलिंग = खोटे, कृत्रिम वेषधारी १२७ खिज्जइ = २८०२ कुवि = कुछ भी १३।११ खुल्लउ =क्षुल्लक २०११ कुसला=कुशल ११ खेमचंद =क्षेमचन्द्र (भट्टारक) २८।११ क्खरु= अक्षर खेवमि = व्यतीत कर रहा हूँ १४६६ केण = किसके द्वारा, किसने ५।११ खंधारूढा = स्कन्धारूढ़ (कन्धे पर केणारणि = किसने अरण्य में ९।१ सवार) १०।११ केरउ =(सम्बन्धार्थक) का ९।१६ केवलि = (श्रुत-)केवली १११ गउ = गया ५।८; २२।६ कोविय = क्रुद्ध होकर ५।१० गउरवेण = गौरवपूर्वक १:१७ कोव = कोप, क्रोध ५।१३, गच्छइ =V गम् ५।२; २०१२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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