Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 142
________________ २६।४ ३।११ ३१५ १६७ १०४ ९२ भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक विंदुसार = चन्द्रगुप्त मौर्य (प्रथम) साणु = श्वान, कुत्ता १०.१० का पुत्र ९११ सामिय= स्वामी २०११; ३३८ सायउ = श्राविका सइच्छइँ = स्वेच्छया १।२३, २४६४ सावय = श्रावक सक्कर = शर्करा, शक्कर २७।१३ सासणस्स =शासन के लिए ११४ सरवा = शकोरा, चुक्कड़ ५।१४ सासणु = शासन सग्गहरि=स्वर्गगृह ४।११ सासिय = शासित ४।१२ सच्चु सत्य २०८ साहाभंगु = शाखाभंग १०५ सजस-स्वयश २८।१८ सिट्ठा = कहे गये हैं २६१८ सण्णास= संन्यास ४।११ सिलायल = शिलातल सण्हउ =चिकना, पतला १८१० सिविणइ = स्वप्न सत्त = सात २७११० सिस्सवग्गु = शिष्यवर्ग २१।१४ सत्त = सत्तू ५।१४ सिस्सु = शिष्य १३।१ सदोसहु = अपने दोषों के लिए २११३ सिसु = शिशु २।५; २०१२ सम्माणिवि =सम्मानित कर ७१ सिहा=शिखा ११।१३ समग्गु समग्र २८।९ सीस = सिर २०१० समप्पिहु = समर्पित ३।६ सुमइ = सुमति १।२२ समरंगणि = समरांगण ५५ सुयकेवलि = श्रुतकेवली २।४; ११३१ समीवि = समीप २०१० सुयंगु= श्रुतांग २४।६ सयडु शकट (मन्त्री) ५।२; ५।१५ सुर = देव ११४ सयक = सकल, समस्त २।५; ४।६ सुरकरि =ऐरावत हाथी १।१९; ५।३ सरिस = सदृश २७।१३ सुसारो= सारभूत ४।३ सलीलु = लीलाओं सहित १११५ सेयंवर = श्वेताम्बर सवण =श्रमण ४।१२ सेविव्वा =सेवन करना चाहिए १२१८ सविज्जा=अपनी विद्या से ४।२ सेसम्मि = शेष में २७११६ ससाउ = आश्वासन ३९ सोमसम्म = सोमशर्मा (पुरोहित) २१८ ससिमण्डल = शशिमण्डल १०७ सोमसिरि = सोमश्री ( पुरोहित ससिसम्मु = शशिशर्मा (सोमशर्मा पत्नी) १९ पुरोहित) १८ सोरठि = सौराष्ट्र (देश) २३।१ सहमाणहु = सम्मानपूर्वक १८३१ सोहिवि =शोधन करके १११ सहस= सहस्र २।२ संगणियउ = विधिपूर्वक गिना ३४ सहुँ = साथ ३।१ संघाधारु = संघ का आधार १४६४ साणहँ = कुत्तों के लिए १८११ संघाहिव = संघाधिप २८१३ २४॥४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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