Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 140
________________ बुल्लाविय= बुलाकर बोल्लियउ = बोला बंभण = ब्राह्मण भ भट्ट = भट्ट (आचार्य) भणहि = कहो २०१९ २८ १७ महुच्छउ = महोत्सव भणिवि = कहकर मद्दकुमारो = भद्रकुमार (भद्रबाहु ) ४ | ३ महुच्छे = महोत्सव मद्दबाहु = भद्रबाहु ( श्रुतकेवली ) मार = कामदेव १।२; १।१९; २/६; २८; ४१९; १३।२; १४।९ मारेवउ = मार डाला गया मिच्छाइट्ठि = मिथ्यादृष्टि मिच्छातम = मिथ्यातम भद्रबाहु - चाणक्य - चन्द्रगुप्त कथानक २३।११ मळ = मैल ६।६ महद्धिहिं = महद्धिकों के द्वारा ३२ महव्वय = महाव्रत महाभडु = महाभट महि = पृथिवी पर महु = मुझे, मेरे लिए भमणुक्कंठिउ = भ्रमण के लिए उत्कण्ठित भारु भार भव्व = भव्य मव्वु = भव्य भवियव्वु = भवितव्यता भावइ = भावे, इच्छानुसार मावि = भविष्य में २।६; ३।५; २१ ४ भास = = प्रतिभाषित मग्गिड = मांगा मच्छ = मत्स्य मज्झण्हे = मध्याह्न मज्झु = मेरा मणि : |मरिवि = मर कर भिक्खाहिँ = भिक्षा के निमित्त १४|१४ भुयवली = भूतबली (आचार्य) २४।६ मुंज हि : = भोजन करो २५/७ भूदेउ = भूदेव ( पुरोहित ) ३।४ ४/७ भूयलि = भूतल पर भेय = भेद ३।१३ = मन में Jain Education International १५४ २८।१२ ३।१२ १५१८ ३।६ ३।९ में ३।१४ २७।३ २६।११ १।१३ ३।१४ ४।११ मुउउ = मर गया होगा मुणिणाह = मुनिनाथ मुणिवरु = मुनिवर मुणिंदु मुनीन्द्र 1 मुणीसर = मुनीश्वर मुणेहु = जानो मोएँ =मोदपूर्वक, हर्ष पूर्व क मंति= मन्त्री मंद=मन्द मुंडिय= मुण्डित र रइधू = कवि का नाम रमइ = विचरण करता है २७१४ १२८ ४/९ ४।७ २।१ २८ ३८ २०१४ २३।७ १३।१ रयभरु=धूल भरा हुआ रणि= रात्रि रवि = रवि, सूर्यं रसोइ = रसवती, भोजनशाला For Personal & Private Use Only २५1८ १८४ २८।१० ६।१० ११ १।१६ ४२ ५।१३; २५1५ ६।१२ २३।४ २२ ३।१ २१ २८|१५ १२३ २७॥७ १९८ ११५ १५1५ राइएण = प्रसन्न चित्तवाले २७ राणी = रानी ( स्वामिनी ) २३|१२ रामिल्लायरियड = रामिल्लाचार्य १३।१५ रिसिपय = ऋषिपद २७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164