Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक ५।३, ९।८ पच्चंतवासिमरि (प्रत्यन्तवासी अरि)-सीमान्तवर्ती शत्रु । यहां पर कवि ने सीमान्तवर्ती शत्रु का नामोल्लेखन नहीं किया है। जैन-साहित्य के उल्लेखों के अनुसार चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त (मौर्य) राजा नन्द के प्रत्यन्तवासी शत्रु की सहायता से युद्ध में राजा नन्द को पराजित कर देते हैं और चन्द्रगुप्त मगध का राजा घोषित कर दिया जाता है । यह शत्रु राजा पर्वतक रहा होगा जो पश्चिमोत्तर सीमान्त का वीर लड़ाकू राजा था और जिसने यूनानी सम्राट सिकन्दर के हृदय में हड़कम्प मचा दी थी।
प्राचीन लेखकों ने चन्द्रगुप्त के लिए पर्वतक की सहायता का स्पष्ट उल्लेख न कर यह बताया है कि चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त मगध से पंजाब चले आये और वहां सेना को सुसंगठित कर उसके द्वारा यूनानियों को पराजित किया तथा उसी सेना को और अधिक सुदृढ़ बनाकर वह मगध आया एवं राजा नन्द को हराकर वहां का राजा बन बैठा ।
मुद्राराक्षस नाटक के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य (प्रथम) की सेना में शक, यवन, किरात, काम्बोज, पारसीक और बाह्रोक जाति के लोग सम्मिलित थे । इससे विदित होता है कि चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त ने यूनानियों की रणनीति के साथसाथ सम्भवतः उसके सैनिकों तथा सीमान्तवर्ती राजा पुरु या पर्वतक की सहायता से राजा नन्द को पराजित किया था। (विशेष के लिए प्रस्तावना देखिए )।
५।४ णंदि (नन्द)-पाटलिपुर का राजा नन्द । नन्दवंश के विषय में वैदिक, बौद्ध एवं जैन उल्लेख परस्पर में इतने विरुद्ध हैं कि यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि नन्द राजाओं ने कितने वर्षों तक राज्य किया था। विसेंट स्मिथ ने इस वंश का राज्यकाल ई० पू० ४१३ से ई० पू० ३२५ तक माना है ।
वैदिक पुराणों के अनुसार शिशुनागवंश में १० राजा हुए, जो क्षत्रिय थे, उनमें महानन्दि अन्तिम राजा था। उसकी शूद्रा नाम की पत्नी से महापद्म नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसने मगध पर अधिकार कर नन्दवंश की स्थापना की। यह महापद्मनन्द पराक्रमी होने के साथ निर्दयी एवं लोभी था। मत्स्यपुराणानुसार उसने क्षत्रिय वंश का संहार कर 'एकच्छत्र' और एकराट् अर्थात् चक्रवर्ती राजा का पद प्राप्त किया। यथा
महानन्दिसुतश्चापि शूद्रायां कलिकांशजः । उत्पत्स्यते महापद्मः सर्वक्षत्रान्तको नृपः ॥
एकराट् स महापद्मो एकच्छत्रो भविष्यति । २७२।१७-१८ आर्यजाति के इतिहास में यह प्रथम शूद्र राजा था। अपने दुष्ट गुणों के कारण वह प्रजा में लोकप्रिय न हो सका।
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