Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 137
________________ णामु = नाम णायरजणु = नागरजन णाराहइ = आराधना नहीं करता १४।७ णासेसइ = नष्ट करेगा, नष्ट हो णिच्छिविउ = निष्छवि देखा णिण्णासिउ = निकाल दिया जायगा णिइवि = देखकर णिउत्तर = नियुक्त किया, निश्चित कर दिया णिक्कारणि = निष्कारण णिच्चाराहहु = नित्य आराधना करो निमित्त = निमित्त णियघरि = निजगृह णियबुद्धि = निज-बुद्धि नियमण = निज मन = कहा णिव मोज = नृपभोज णिवसइ = रहता है णिवसण = वस्त्र रहित णीइ = नीति णीसल्लु = निःशल्य णेवज्ज = नैवेद्य दणु: शब्दकोश १।१७ ६।६ ५/५ १।१६; ८1५ ४६ निर्दोष णिय मंदिर = निज - मन्दिर, भवन ४|१ णियसत्ति = निजशक्ति णिरवज्जा = निरवद्य, णिरारिउ = नितराम्, सदा णिरु = निरन्तर, अत्यन्त णिरुक्कंट्ठिय = अत्यन्त उत्कण्ठा पूर्वक णिरुत्तउ : = नन्दन १३।८ २३ २१।१ ३।१५ ८1८ ४।१२ २७।५ २८|८ ८४ २२|४ नंदउ = नन्दित ( आनन्दित ) २८|१८ १1१० Jain Education International ९।३ २१।९ २२।३ ९।१७ ७२ ११ ३।१ २६।३ २१।१२ २४ = नन्द ( राजा ) णंदु = ส तइया = तृतीय; तभी से तक्खण = तत्क्षण तत्र, तच्छ = वहाँ तत्थ = तत्र, वहाँ तत्तिय = त्रस्त तरुण = तरुण, युवक तववलिण = तप में बलवान् = २४/५ तवसा तापस २।१ तवायर = तपाकर, तपोनिधि २८।११ तहि = उसके १।१० तहु = उसकी, उसका १९ ताहु = पिता के तासु = उसकी तिष्णि = तिरथेसर = तीर्थेश्वर तियलोय = त्रिलोक तुच्छ = तुच्छ तुरियइँ = चतुर्थ (काल) ते = वं तेण = उसवे थक्क = २८।१२ २७।१७ १६।९ तियाल = त्रिकाल २२७ तिरिय = तिर्यञ्च २२।११ तिलहँ = तिलहन-सामग्री १३।११ तिसल्लउ = तीन प्रकारकी शल्य २१॥९ २४।७ २७।१७ स्था, = थूलभद्दु ( आचार्य ) स्थित स्थूलभद्र ८७ For Personal & Private Use Only ५।१ थूलायरियउ = स्थूलाचार्य ( आचार्य ) थोवउ = स्तोक, थोड़ा २४।३ २९ २२ ४|४ २७/५ १२।१२ ४३ १२ २५ २३; २०७ १३।१६ १३।१५; २१।१ १३।१५; २१।४ ६।३ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164