Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भद्रबाहु-वाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
[११] आचार्य भद्रबाहु द्वारा स्वप्न-फल-कथन राजा चन्द्रगुप्त ने उद्यान में कर्ममल ( दोष ) रहित भद्रबाहु श्रुतकेवलि के निकट जाकर पूछा-"अष्ट निमित्त-ज्ञान के पारगामी हे स्वामिन, स्वप्नों का फल मुझे कहिए।" उसके प्रश्न को सुनकर वे महामुनि भद्रबाहु भावों एवं काल की परिणति को प्रकाशित करते हुए बोले
(१) सूर्य के अस्त को देखने से गतमल ( कर्मरहित ) केवलज्ञान का भी अस्त हो जायगा ( अर्थात् अब आगे केवलज्ञान उत्पन्न नहीं होगा)। अवधिज्ञान एवं मनःपर्ययज्ञान ( तथा उनकी ऋद्धियों) का क्षय होगा। रवि अस्तमन रूप प्रथम स्वप्न इसी फल को स्पष्ट करता है।
(२) कल्पवृक्ष को भग्न शाखा के देखने का यह फल है कि आगे के राजा बरे उद्देश्य से सम्पत्ति का संग्रह करेंगे। राज्य को छोड़कर वे तप को कुछ भी नहीं गिनेंगे और परायो लक्ष्मी के संग्रह (अर्थात् छीना-झपटी) में लगे रहेंगे ।
(३) नभरूपी आंगन में उलटे हुए विमान को देखने से हे नरेश ! इस प्रसिद्ध पंचम-काल में यहाँ चारणमुनि नहीं आवेंगे। देवों का भी आगमन निषिद्ध रहेगा ( अर्थात स्वर्ग से देव भो नहीं आयेंगे )।
(४) जो बारह फणवाले सर्प को देखा है, सो वह स्वप्न बारह वर्ष के दुष्काल को कहता ( बताता ) है । ( अर्थात् आगे चलकर मगध में बारह वर्षों का अकाल पड़ेगा)।
(५) हे नृप, चन्द्र-मण्डल में भेद के देखने से लोक में मुनि और जिनदर्शन (मत ) का भेद होगा, ऐसा जानो।
पत्ता-( ६ ) हे नृप, आपने जूझते हुए जो काले हाथियों को देखा है, सो घनमाला ( मेघ ) यहां विरल ( जहां-तहाँ-बहुत कम ) बरसेगी तथा वज्राग्नि-( बिजली-शिखा ) घरावलय ( पृथ्वीमण्डल ) को नष्ट करेगी ॥११॥
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