Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
[५] पाटलिपुर ( वर्तमान पटना ) के राजा नन्द का वर्णन। प्रत्यन्तदेश के राजा ( पुरु ?) द्वारा की गयी घेराबन्दी से शकट मन्त्री चिन्तित हो जाता है और नन्द के संकेत से वह राज्य-कोष से मुद्राएँ भेंटकर उसे
शान्त करता है।
इसी समय अन्य कथान्तर हुआ। पाटलिपुर ( पाटलिपुत्र ) नगर में नन्द नाम के राजा राज्य करते थे। उनका शकट नाम का एक मन्त्री कहा गया है । उसके कारण ( सभी का ) समय निरन्तर ही सुखपूर्वक व्यतीत हो रहा था। उसी समय प्रत्यन्तवासी ( सीमान्तवर्ती ) किसी शत्रु ने ऐरावत हाथी के समान हाथियों द्वारा उस नन्द राजा के नगर को घेर लिया। तब नृपों ( रूपी तारागणों) में चन्द्रमा के समान राजा नन्द ने शत्रु की अप्रमाण सेना को देखकर अपने शकट मन्त्री से पूछा (कि यह क्या है ) ? तब मन्त्री ने बताया"समरांगण में ( युद्धभूमि में ) दुर्जेय बैरी उपस्थित है।" तब राजा ने उससे कहा-"अपनी बुद्धि से क्षण-भर में उसको शान्त करो। ( इस कार्य के निमित्त ) जो-जो कुछ भी तुम्हारे मन में रुचिकर लगे, तुम जाकर समुचित रीति से वही-वही करो।" तब उस शकट मन्त्री ने नन्द राजा के भण्डार-कोष का समस्त द्रव्य शत्रु को समर्पित कर उसे शान्त कर दिया। वह (शत्रु ) शान्त होकर स्वदेश लौट गया ।
अनेक वर्ष व्यतीत हो जाने पर राजा नन्द किसी एक दिन अपना कोषगृह देखने गया और उसे देखते ही वह क्रोधित हो उठा । जब बद्धकषाय राजा ने उस कोषगृह को रिक्त ( खाली ) देखा तब उसने किसीसे पूछा-“यहाँ का द्रव्य कहां चला गया ? यहाँ पर मैं कुछ भी नहीं देख रहा ?" तब किसी ने कहा"महाराज क्षमा कीजिए, मैं प्रकट करता हूँ-हे देव, शकट मन्त्री ने समस्त धन शत्रु को दे दिया है। इसी कारण आपका यह कोषगृह खाली होकर छिन्न ( नष्ट ) हो गया है ।" उस पुरुष का कथन सुनकर वह नरेश क्रोधित हो उठा। उस नन्द वे कुटुम्ब सहित उस मन्त्री शकट को तत्काल कारागृह में डलवा दिया तथा प्रतिदिन दोनों समय मात्र एक सकोरा भर जल और सत्त देने लगा।
पत्ता-अति थोड़े जल और भोजन को देखकर शकट मन्त्री ने परिजनों से कहा-"जो राजा नन्द का कुलक्षय करने में समर्थ हो, वही इसे लेकर शोघ्र खावे" ॥५॥
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