Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
[६] दुर्भाग्य से राजा नन्द शकट से रुष्ट होकर उसे सपरिवार कारागार में डाल देता है और प्रतिदिन भोजन के रूप में उसे
मात्र एक सकोरे-भर सतू एवं जल प्रदान करता है। शकट का कथन सुनकर सभी परिजनों ने कहा-"राजा नन्द को सन्तान के क्रम को क्षय करने में तुम हो क्षम (समर्थ ) हो । अतः इसे लो, खाओ और यह जल पियो। बुद्धि के प्रसार ( बुद्धि-कौशल ) में तो तुम्ही अति प्रबल हो।" तब उस शकट ने परिजनों के उस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और चिरकाल तक ( नन्द द्वारा प्रदत्त) किन्तु उस थोड़े से भोजन को खाता रहा। (भूख के कारण) शकट का कुटुम्ब तो मर गया किन्तु तेज छविधाला वह शकट हो जोता रहा सका। किन्तु वह भो अत्यन्त क्षोण कलेवरवाला हो गया।
प्रचुर काल बोत जाने पर शत्रु ने पुनः आकर उस श्रेष्ठ पाटलिपुर नगर को घेर लिया। तब नागरिकजनों ने बड़ा हल्ला ( शोरगुल ) मचाया । तब नन्द नरेश ( अपने किसी मन्त्री से ) बोला-“हे आर्य, वेगपूर्वक जाओ और किसो भी उपाय से उस शत्रु को सदा-सदा के लिए शान्त कर दो।" राजा का कथन सुनकर किसी ने उत्तर में कहा-"श रुट ने तो चिरकालीन मन्त्र ( सलाह ) को प्रकट कर हो दिया था, किन्तु उसे ता आपने क्षुधा, तृष आदि दुःखों से व्याप्त कारागृह में कुटुम्ब सहित डाल रखा है। वह वहां बारह वर्षों से स्थित है। क्या पता वह वहां जी रहा है या मर गया ?"
पत्ता-तब किसी से प्रेरित होकर कोई मनुष्य हाथ पसारकर बोला"हे देव, ( सुनिए ), अबरुद्ध भाग्य वह शट प्रतिदिन ( अल-मात्रिक ) जलसत्तू रूप सम्बल (भोजन) को ग्रहण करते-करते अत्यन्त मन्द स्वर अर्यात क्षीण हो गया है ।" ॥६॥
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