Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
[२] आचार्य गोवर्धन का अपने साधु-संघ सहित कौतुकपुर में __ आगमन एवं बालक भद्रबाहु से उनका वार्तालाप उसी समय तप करने के कारण अनिन्द्य (प्रशंसनीय ), पृथ्वी पर विहार करते हुए १२००० (बारह हजार ) मुनिराजों के साथ मुनिनाथ (आचार्य) गोवर्धन नामके मुनीन्द्र उसी स्थान पर आ पहुँचे। अष्टांगनिमित्तज्ञान के परगामी उन मुनीन्द्र गोवर्धन ने उस बालक को देखकर यह जान लिया कि महान् गुणी यह बालक निश्चय ही पाछला ( अन्तिम ) श्रुतकेवली होगा।
और इधर मुनिसंघ को देखते ही वे सभी शिशु हतज्ञान (-अथवा हतप्रभ ) होकर पलायन कर गये । केवल बालक भद्रबाहु ही अकेला वहां खड़ा रहा, जिसे कि फिर भविष्य में लाभ होने वाला होगा।
उस बालक ने दौड़कर ऋषि के चरणों में नमन किया। मुनिराज ने अनुरागपूर्वक उस बालक से पूछा-“हे नन्दन, हमें शीघ्र ही बता कि तू किसका नन्दन है ?" तब उस बालक ने कहा-"मैं सोमशर्मा द्विज का पुत्र है और मेरा नाम भद्रबाहु है ।" यह सुनकर आचार्य गोवर्धन ने तत्काल ही उससे पुनः पूछा- "हे गुणालय बालक, क्या तू मेरे समोप नहीं पढ़ेगा ? मैं तुझे पढ़ाऊंगा।"
घत्ता-उस बालक भद्रबाहु ने स्वामी ( मुनिराज ) से कहा-“सम्प्रति मेरे ऊपर प्रसाद ( कृपा) कीजिए, जिससे कि मैं पढ़ जाऊँ।" उन मुनिराज ने गुण से भरे उस शिशु का हाथ पकड़ लिया और उसके साथ वे द्विजवर ( सोमशर्मा ) के घर जा पहुँचे ॥२॥
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