Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्रस्तावना
एवं प्रामाणिक चर्चा की है। उसके आधार पर मध्यकालीन राजनैतिक एवं सामाजिक इतिहास लिखा जा सकता है । वंश-वृत्त
रइधू-साहित्य की प्रशस्तियों के अनुसार वे संघपति देवराज के पौत्र एवं साहू हरिसिंह के पुत्र थे । उनकी माता का नाम विजयश्री था। वे अपने मातापिता के तृतीय पुत्र थे। अन्य दो भाइयों के नाम थे-बाहोल एवं माहणसिंह । रइधू की पत्नी का नाम सावित्री था तथा उनके पुत्र का नाम था उदयराज । जिस समय उसका जन्म हुआ उस समय कवि रइधू 'अरिष्टनेमिचरित' के प्रणयन में व्यस्त थे।
प्रस्तुत रचना में रहधू ने भद्रबाहु के अतिरिक्त नन्द एवं मौर्यवंशी राजाओं तथा ब्राह्मण-चाणक्य, प्रत्यन्तवासी शत्रु-राजा आदि की जो चर्चा की है, उन पर विचार करना भी आवश्यक प्रतीत होता है। अतः यहाँ पर उनका भी संक्षिप्त तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है।
भारतीय इतिहास में नन्दवंशी राजाओं का महत्त्व भारतीय इतिहास के निर्माण में मगध, विशेषतया उसके नन्द राजाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। उनका वंशानुक्रम एवं राज्यकाल भले ही विवादास्पद हो और भले ही वह सर्वसम्मत न हो, फिर भी इतिहासकार यह मानने के लिए विवश हैं कि वे प्राचीन भारत के इतिहास को क्रमबद्ध बनाने के लिए ठोस आधार बनें। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि मगध का इतिहास प्रायः पूरे भारत का इतिहास है क्योंकि प्राचीन भारत के इतिहास की उसके बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती।
राजनैतिक दृष्टि से नन्द राजाओं की प्रथम विशेषता यह है कि उन्होंने भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय क्षत्रियेतर-विशाल-साम्राज्य की सर्वप्रथम स्थापना की। दूसरी विशेषता यह है कि उन्होंने ब्राह्मण-धर्म को सर्वथा उपेक्षा की और तीसरी विशेषता यह थी कि उन्होंने छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त उत्तरपूर्वी भारत को एकसूत्र में बांधने का अथक प्रयत्न किया। यही कारण है कि उनसे रुष्ट पुराणकारों ने भी उन्हें अतिबले की संज्ञा प्रदान की। यतः नन्दो वे
१. महाकवि रइधू के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विस्तृत परिचय के लिए देखिए ।
-रइधू-साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन-लेखक डॉ. राजाराम जैन
( राजकीय प्राकृत शोध संस्थान, वैशाली से १९७४ में प्रकाशित) २. विष्णुपुराण ४।२४।२० ।
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