Book Title: Avashyaksutra Niryuktirev Curni Part_1
Author(s): Sundarsuri, Pramodsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text ________________
श्रीधीरसुन्दरसू० आव अवचर्णिः ।१८६।।
गाथा-१६६ १६७-६८
हस्तिनः सप्तापि षट् च त्रियो नागकुमारेधूपपन्नाः, अन्ये ब्याचक्षते-हस्ती एकः षट् च खियो नागकुभारेषु, शेषैर्नाधिकार इति, एका सिद्धि प्राप्ता मारुदेवी नामेः पत्नी ॥१६६॥ अथ नीतिद्वारमाह--
हक्कारे मक्कारे धिक्कारे चेव दंडनीईओ ।
वुच्छं तासि विसेसं जहकमं आणुपुब्बीए ॥ १६७ ॥ हक्कारमकाधिक्काराश्चैव दण्डनीतयो वर्तन्ते, वक्ष्ये तासां विशेष यथाक्रम-या यस्येति आनुपूर्व्यापरिगट्या ॥१६७।।
पढमबीयाण पढमा तइयचउत्थाण अभिनवा बीया ।
पंचमढुस्स य सत्तमस्स तइया अभिनवा उ ॥१६८ ॥ प्रथमद्वितीययोः कुलकरयोः प्रथमा हक्काराख्या, तृतीयचतुर्थयोरभिनवा द्वितीया मकाराख्या, स्वल्पापराधे प्रथमा, महापराधे द्वितीया इति साऽभिनवा, पञ्चमष्ठपष्ठयोः सप्तमस्य च तृतीयाभिना तूत्कृष्टा, द्वितीया मध्यमा, आद्या जघन्या, तिस्रोपि लघुमध्यमोत्कृष्टापरायेषु ॥१६८।।
॥१८॥
Jain Education Intel
For Privale & Personal use only
Loading... Page Navigation 1 ... 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244