Book Title: Avashyaksutra Niryuktirev Curni Part_1
Author(s): Sundarsuri, Pramodsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 218
________________ श्रीधीरसुन्दरसू० आव० अवचूर्णिः | ॥२१४॥ दटुं कयं विवाहं जिणस्स लोगोऽवि काउमारद्धो ३३ । गुरुदत्तिआ य कण्णा परिणिज्जते तओ पायं ॥२४॥ जिनस्य विवाह कृतं दृष्ट्वा लोकोऽपि स्वापत्यादीनां विवाह कर्तुमारब्धवान् , भगवता युगलधर्मव्यवच्छेदाय भरतेन सह जाता ब्राह्मी बाहुबलिने दत्ता, बाहुबलिना सह जाता सुन्दरी भरतायेति दृष्ट्वा तदारभ्य प्रायो लोके कन्या पित्रा दत्ता सती परिणीयते ॥२४॥ दत्तिव्य दाणमुसभं दितं दलूं जणमिवि पवत्तं । जिणभिक्खादाणंपि हु, दलूं भिक्खा पवत्ताओ ३४ ॥२५॥ अथवा दत्तिर्दानं, तच्च भगवन्तं सांवत्सरिकदान' ददतं दृष्ट्वा लोकेऽपि प्रवृत्तं, यद्वा दत्तिः-भिक्षादान || गाथातच्च जिनस्य प्रपौत्रण कृतं दृष्ट्वा लोकेऽपि भिक्षा प्रवृत्ता ॥२५॥ मडयं मयस्स देहा तं मरुदेवीइ पढमसिद्धत्ति । देवेहि पुरा महिअं ३५ झावणया अग्गिसकारो ॥२६॥ मृतकं-मृतस्य देहः, तच्च मृतकं मरुदेव्याः प्रथमसिद्ध इतिकृत्वा देवैः पुरा महितं-पूजित, धमापना अग्निसंस्कारः ॥२६॥ ॥२१४॥ Jain Education International For Privale & Personal use only www.jainelibrary.org

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