Book Title: Avashyaksutra Niryuktirev Curni Part_1
Author(s): Sundarsuri, Pramodsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीधी सुन्दर ० आव० अवचूणिः ॥२३२॥
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चित्तस्स सुद्धतइआ कित्तिअजोगेण नाण कुंथुस्स १७ । कत्ति सुद्धे बारसि अरस्स नाण' तु रेवइर्हि १८ ॥२४९॥ मग्गसिरसुद्धइकारसी मल्लिस्स अस्सिणीजोगे १९ । फग्गुणबहुले बारसि सवणेण सुव्वयजिणस्स २० ॥२५०॥ मगसिरसुद्धिकारसि अस्सिणजोगेण नमि जिर्णिदस्स २२ । आसोअमावसाए नेमिजिदिस्स चित्ताहि २२ ॥२५१॥ चित्ते बहुल उत्त्थी विसाहजोएण पासनामस्स २३ । साहसुदसमी हत्थुत्तरजोगि वीरस्स २४ ॥ २५२॥ 'फगु०' इत्यादिद्वादश गाथाः सुगमाः । अथ कस्य कस्मिन् दिवसविभागे ज्ञानमुत्पन्नमित्याह - तेवीसाए नाणं उप्पण्णं जिणवराण पुव्वण्हे । वीरस्स पच्छिम पमाणपत्ताए चरिमाए || २५३ ||
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गाथा - २४९-५ ५१-५२-५
॥२३२॥
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